📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 28 "श्रेष्ठ योगी और मोक्ष का मार्ग"
📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 28 "श्रेष्ठ योगी और मोक्ष का मार्ग" 🔷 संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ श्लोक 28 वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् | अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् || 28 || हिंदी अर्थ: जो व्यक्ति वेदों के अध्ययन, यज्ञ, तपस्या और दान से प्राप्त होने वाले समस्त पुण्य फलों को जान लेता है, वह योगी उन सबको पार कर जाता है और परमधाम को प्राप्त करता है। 📌 इस श्लोक का सारांश और शिक्षा ✅ 1. सांसारिक पुण्य से परे ज्ञान श्रीकृष्ण बताते हैं कि वेद, यज्ञ, तप और दान से मिलने वाले पुण्य से भी श्रेष्ठ कुछ है – और वह है योग और भक्ति का मार्ग , जो व्यक्ति को सीधे परमधाम की ओर ले जाता है। ✅ 2. मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग जो योगी आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति के पथ पर चलता है, वह उन सभी पुण्यों से परे चला जाता है जो अन्य धार्मिक कर्मों से प्राप्त होते हैं। ✅ 3. योगी का सर्वोच्च स्थान एक सच्चा योगी अंततः भगवान के परम धाम (मोक्ष) को प्राप्त करता है , जहाँ पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है। 🌟 मोक्ष प्राप्...