ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 43 - इच्छाओं पर विजय का मार्ग
"श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण के अनुसार, इच्छाओं पर विजय पाने का सबसे प्रभावी तरीका क्या है? आज के श्लोक में वे बताते हैं कि आत्मा के बल से हम मन और इंद्रियों के नियंत्रण से मुक्त हो सकते हैं। आइए इस गहरे रहस्य को समझें। कल हमने श्लोक 42 में जाना कि इंद्रियां, मन और बुद्धि के ऊपर आत्मा का वास है, और यह आत्मा ही हमें सही मार्ग दिखा सकती है। ...