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Showing posts with the label ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 34 - 🧠 मन, बुद्धि और भक्ति से पाओ भगवान को!

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 34 - 🧠 मन, बुद्धि और भक्ति से पाओ भगवान को! 🙏 स्वागत है "गीता का सार - जगत का सार" में! कृपया इस दिव्य ज्ञान को अधूरा न सुनें, क्योंकि इससे गीता जी का अनादर हो सकता है। यदि आपके पास समय कम है, तो आप शुरुआत में ही छोड़ सकते हैं। हम या भगवान बुरा नहीं मानेंगे। 🔁 कल हमने जाना था कि भगवान कहते हैं — "जब स्त्रियाँ, वैश्य, शूद्र और पापयोनि तक मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, तो पुण्यात्मा भक्तों का क्या कहना?" जीवन दुखमय और अनित्य है, इसलिए हमें इसी जीवन में भगवान का स्मरण करना चाहिए। 🔁 श्लोक: "मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः॥" ➡️ भावार्थ : "हे अर्जुन! तू मुझमें मन लगा, मेरा भक्त बन, मेरी पूजा कर और मुझे नमस्कार कर। इस प्रकार मुझमें लीन होकर, तू मुझे ही प्राप्त होगा।" ✅ भगवान को प्राप्त करने के 4 सरल मार्ग: मन्मना – मन को भगवान में लगाना मद्भक्त – भक्त बनना मद्याजी – पूजा करना मां नमस्कुरु – नमस्कार करना (आत्मसमर्पण) ➡️ यदि क...

👑 कौन भी हो, प्रभु को पा सकते हो! | Shrimad Bhagavad Gita Chapter 9 Shlok 33 | #GeetaKaSaar #JagatKaSaar 🙏

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 33 - भगवान सबके हैं — न कोई छोटा, न कोई बड़ा! नमस्कार मित्रों! स्वागत है आपका Geeta ka Saar by Jagat ka Saar में। आज हम चर्चा करेंगे श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 9, श्लोक 33 की। कृपया इस दिव्य ज्ञान को अधूरा न सुनें, क्योंकि इससे गीता जी का अनादर हो सकता है। यदि आपके पास समय कम है, तो आप शुरुआत में ही छोड़ सकते हैं। हम या भगवान बुरा नहीं मानेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं आज की यात्रा..." कल हमने पढ़ा था श्लोक 32, जिसमें भगवान ने बताया कि — “स्त्रियाँ, वैश्य, शूद्र आदि भी यदि मुझे भजते हैं, तो वे भी परमगति को प्राप्त करते हैं। अब आइए आज के श्लोक की ओर बढ़ते हैं — अध्याय 9, श्लोक 33: “किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा। अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।९.३३।। ” भावार्थ: जब स्त्री, वैश्य, शूद्र जैसे लोग भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, तो पुण्यात्मा ब्राह्मण और भक्तजन तो निश्चित रूप से प्राप्त कर सकते हैं। आध्यात्मिक अर्थ: भगवान कहते हैं कि मोक्ष सभी के लिए है। व्यावहारिक अर्थ: जीवन चाहे जैसा हो, यदि...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 32 - भगवान सबके हैं — न कोई छोटा, न कोई बड़ा!

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 32 - भगवान सबके हैं — न कोई छोटा, न कोई बड़ा! 🙏 नमस्कार मित्रों! आपका स्वागत है “ Geeta Ka Saar by Jagat Ka Saar ” में, जहाँ हम हर दिन श्रीमद्भगवद्गीता के एक श्लोक का सार, अर्थ और गूढ़ भाव आपके साथ साझा करते हैं। 💬 कृपया इस दिव्य ज्ञान को अधूरा न सुनें, क्योंकि इससे गीता जी का अनादर हो सकता है। यदि आपके पास समय कम है, तो आप शुरुआत में ही छोड़ सकते हैं। हम या भगवान बुरा नहीं मानेंगे। लेकिन अगर आप पूरा सुनते हैं, तो शायद जीवन की कोई गुत्थी सुलझ जाए। 🔁 Recap (अध्याय 9 श्लोक 31) कल हमने जाना कि — "जो मेरा भक्त है, वह कभी नाश को प्राप्त नहीं होता।" क्योंकि भगवान उसे सद्गति प्रदान करते हैं, वो चाहे आज कैसा भी हो — वो भविष्य में निश्चित ही उत्तम होगा। और हमने आपसे पूछा था: ❓ भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार, उनका भक्त किस प्रकार का फल पाता है? ✅ सही उत्तर था: A. वह धीरे-धीरे पुण्य आत्मा बनता है 👏 जिन्होंने सही उत्तर दिया, उन्हें बहुत-बहुत बधाई। आपके नाम कल के प्रीमियर में आएंगे! 🌸 Today's Shlok (Chapter ...

❗पाप से पुण्य तक की यात्रा | Chapter 9 Shlok 31 | श्रीकृष्ण का बदलाव का सूत्र | Jagat ka Saar

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ❗ पाप से पुण्य तक की यात्रा | Chapter 9 Shlok 31 | श्रीकृष्ण का बदलाव का सूत्र | Jagat ka Saar नमस्कार मेरे आत्मीय साथियों! स्वागत है आपका "Geeta ka Saar – by Jagat ka Saar" के आज के दिव्य ज्ञान सत्र में। हर दिन हम गीता के एक श्लोक से जीवन को देखने का नया दृष्टिकोण सीखते हैं। एक विनम्र अनुरोध: कृपया कमेंट करने से पहले पूरा सुनें, अधूरा सुनकर गीता जी की अवहेलना न करें। अगर आपके पास अभी समय नहीं है, तो आप प्रारंभ में ही skip कर सकते हैं — ना हम बुरा मानेंगे और ना ही प्रभु। ✅ Recap – कल का श्लोक (Chapter 9, Shlok 30) कल हमने जाना कि — अगर कोई अत्यंत पापी भी भगवान की सच्ची और एकनिष्ठ भक्ति करता है, तो वह साधु कहलाने योग्य है। भगवान हमारे अतीत को नहीं, हमारे वर्तमान संकल्प और नीयत को देखते हैं। ✅ Today’s Introduction – Chapter 9, Shlok 31 "क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति। कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥" भावार्थ: "वह (भक्त) शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और चिरकाल की शांति को प्राप्त करता है। हे अर्जुन! तू यह ...

❗पापी भी साधु कहलाए? | Chapter 9 Shlok 30 | भगवद गीता का सबसे चौंकाने वाला श्लोक | Jagat ka Saar

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ❗ पापी भी साधु कहलाए? | Chapter 9 Shlok 30 | भगवद गीता का सबसे चौंकाने वाला श्लोक | Jagat ka Saar नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका "Geeta ka Saar – by Jagat ka Saar" के इस पावन श्रृंखला में। यहां हम हर दिन एक श्लोक को जीवन से जोड़कर समझते हैं। कमेंट करने से पहले कृपया पूरा सुनें। अधूरा सुनकर गीता जी की अवहेलना ना करें। यदि आपके पास समय नहीं है तो प्रारंभ में ही स्किप कर सकते हैं। आज का श्लोक है – अध्याय 9, श्लोक 30 जिसमें भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि — "पापी भी अगर मेरी सच्ची भक्ति करे, तो वह साधु कहलाने योग्य है!" लेकिन… क्या सच में ऐसा हो सकता है? आइए, इसे समझते हैं आज के ज्ञानयात्रा में। कल हमने देखा — भगवान कहते हैं कि मैं हर प्राणी में समभाव रखता हूँ, लेकिन जो मेरी भक्ति करता है, मैं उसमें रम जाता हूँ। इसका मतलब ये नहीं कि भगवान पक्षपाती हैं, बल्कि वो प्रेमपूर्ण भक्ति को महत्व देते हैं। अब बात करते हैं आज के श्लोक की — "अपि चेत् सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्। साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥" भावार्थ: यदि कोई अत्यंत ...