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ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 42 - ज्ञान के प्रकाश से संशय को दूर करें

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 "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जानना चाहते हैं कि ज्ञान किस तरह से जीवन के सभी संशयों को समाप्त कर सकता है? आज के श्लोक में हम इसी पर गहराई से चर्चा करेंगे। पिछले श्लोक में हमने देखा था कि श्रद्धा और विश्वास से ही मनुष्य जीवन में शांति और सफलता प्राप्त कर सकता है। आज हम जानेंगे कि ज्ञान के माध्यम से किस तरह संशय को समाप्त किया जा सकता है। "श्लोक 42 में श्रीक...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 40 से 41 - विश्वास और समर्पण का महत्व

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 "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जानते हैं कि ज्ञान की यात्रा में सबसे बड़ा अवरोध क्या है? संशय! आज के श्लोकों में श्रीकृष्ण इस पर गहराई से प्रकाश डालते हैं। पिछले श्लोक 39 में हमने जाना था कि श्रद्धा और संयम से ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है। अब जानते हैं कि संशय कैसे हमारी प्रगति में बाधा डालता है। "श्लोक 40 में श्रीकृष्ण कहते हैं: अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च स...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 39 - विश्वास और दृढ़ता से ज्ञान प्राप्ति का मार्ग

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  "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आपने कभी सोचा है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए सबसे जरूरी चीज़ क्या है? आज के श्लोक में श्रीकृष्ण इसका उत्तर देंगे। पिछले श्लोक में हमने जाना कि ज्ञान संसार का सबसे पवित्र तत्व है। आज हम सीखेंगे कि इसे प्राप्त करने के लिए कौन से गुण सबसे महत्वपूर्ण हैं। "श्रीकृष्ण भगवद गीता के श्लोक 39 में कहते हैं: श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः ...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 38 - परम ज्ञान की शुद्धता और शक्ति

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  "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जानते हैं कि संसार में सबसे पवित्र और शुद्ध चीज़ क्या है? भगवद गीता के इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने इसका रहस्य उजागर किया है। आइए, इसे गहराई से समझते हैं। पिछले श्लोकों में हमने जाना कि कैसे ज्ञान हमारे संदेहों का अंत करता है और हमारे जीवन में नई रोशनी लाता है। आज हम उस ज्ञान की शुद्धता और पवित्रता को जानेंगे। "श्रीकृष्ण भगवद गीत...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 35 से 37 - संदेहों का अंत और ज्ञान की शक्ति का रहस्य

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  "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आपके जीवन में कोई ऐसा सवाल है जो बार-बार आपको परेशान करता है? आज के श्लोक में जानेंगे कि कैसे सच्चा ज्ञान हमारे संदेहों का अंत कर सकता है और हमें शांति की ओर ले जा सकता है। कल के श्लोकों में हमने ज्ञान यज्ञ और गुरु की शरण का महत्व जाना था, जहाँ श्रीकृष्ण ने हमें सिखाया कि सच्चे गुरु से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। आज हम और ...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 33 से 34 - ज्ञान यज्ञ और गुरु के महत्व का गहरा अर्थ

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"श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जानना चाहते हैं कि कैसे सच्चा ज्ञान हमारे जीवन को बदल सकता है? आज हम जानेंगे कि क्यों श्रीकृष्ण ज्ञान यज्ञ को सभी यज्ञों में श्रेष्ठ मानते हैं! कल के श्लोकों में हमने देखा कि श्रीकृष्ण ने यज्ञ के विभिन्न रूपों पर चर्चा की थी, जो हमें जीवन में संतुलन और समर्पण के मार्ग पर ले जाते हैं। आज हम ज्ञान यज्ञ के महत्व पर बात करेंगे। "आज ...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 31 से 32 - यज्ञ का महत्व और आत्म-संयम की शक्ति

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"श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जीवन में शांति और संतोष का अनुभव करना चाहते हैं? जानें कैसे यज्ञ का सही अर्थ और आत्म-संयम का अभ्यास हमें सच्चे संतुलन और आंतरिक शांति की ओर ले जाता है। आइए आज के श्लोकों पर नजर डालते हैं! कल के श्लोकों में, श्रीकृष्ण ने हमें यज्ञ की विभिन्न विधाओं और आत्म-संयम के महत्व के बारे में बताया। यह सीख हमें यज्ञ की महत्ता और इसके पीछे के गहर...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 29 से 30 - भिन्न-भिन्न यज्ञ और साधना के मार्ग

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  "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आपने कभी सोचा है कि आपके कर्म एक यज्ञ का रूप ले सकते हैं? कैसे हर कर्म में समर्पण का भाव आपके जीवन को संतुलित बना सकता है? आइए, श्रीकृष्ण के आज के इन श्लोकों से यह अद्भुत ज्ञान प्राप्त करें। कल के श्लोकों में हमने जाना कि कैसे हर कर्म को यज्ञ मानकर उसे निभाना चाहिए। यज्ञ का भाव लाने से जीवन में शांति, समर्पण और सच्ची संतुष्टि आती है। ...