ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 28 - ध्यान और ज्ञान का संगम

 

"श्री हरि


बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय ||"

"नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका हमारे चैनल पर, जहाँ हम हर दिन श्रीमद्भगवद्गीता के अद्भुत श्लोकों का अर्थ और उनके जीवन पर प्रभाव को समझते हैं। आज हम चर्चा करेंगे अध्याय 6, श्लोक 28 पर, जो ध्यान और आत्मिक शांति का गूढ़ रहस्य उजागर करता है। अंत तक बने रहें!


पिछले वीडियो में हमने चर्चा की थी अध्याय 6, श्लोक 27 पर, जिसमें ध्यान से मिलने वाली आत्मिक शांति और दिव्य अनुभव की बात की गई थी।


आज हम जानेंगे अध्याय 6, श्लोक 28 के बारे में, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण आत्मा और ध्यान के परम संबंध को समझा रहे हैं।"


"॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥


""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।।


अथ ध्यानम्


शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥


यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥


वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥"


"भगवतगीता अध्याय 6 श्लोक 28"

"(श्लोक-२८)


युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः । सुखेन ब्रह्मसंस्पर्श-मत्यन्तं सुखमश्नुते ॥


उच्चारण की विधि - युञ्जन्, एवम्, सदा, आत्मानम्, योगी, विगतकल्मषः, सुखेन, ब्रह्मसंस्पर्शम्, अत्यन्तम्, सुखम्, अश्नुते ॥ २८ ॥


शब्दार्थ - विगतकल्मषः अर्थात् पापरहित, योगी अर्थात् योगी, एवम् अर्थात् इस प्रकार, सदा अर्थात् निरन्तर, आत्मानम् अर्थात् आत्माको (परमात्मामें), युञ्जन् अर्थात् लगाता हुआ, सुखेन अर्थात् सुखपूर्वक, ब्रह्मसंस्पर्शम् अर्थात् परब्रह्म परमात्माकी प्राप्तिरूप, अत्यन्तम् अर्थात् अनन्त, सुखम् अर्थात् आनन्दका, अश्नुते अर्थात् अनुभव करता है।


अर्थ - वह पापरहित योगी इस प्रकार निरन्तर आत्माको परमात्मामें लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्माकी प्राप्तिरूप अनन्त आनन्दका अनुभव करता है॥ २८॥"

"व्याख्या- 'युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः '- अपनी स्थितिके लिये जो (मनको बार- बार लगाना आदि) अभ्यास किया जाता है, वह अभ्यास यहाँ नहीं है। यहाँ तो अनभ्यास ही अभ्यास है अर्थात् अपने स्वरूपमें अपने-आपको दृढ़ रखना ही अभ्यास है। इस अभ्यासमें अभ्यासवृत्ति नहीं है। ऐसे अभ्याससे वह योगी अहंता-ममतारहित हो जाता है। अहंता और ममतासे रहित होना ही पापोंसे रहित होना है; क्योंकि संसारके साथ अहंता- ममतापूर्वक सम्बन्ध रखना ही पाप है।


पंद्रहवें श्लोकमें 'युञ्जन्नेवम्' पद सगुणके ध्यानके लिये आया है और यहाँ 'युञ्जन्नेवम्' पद निर्गुणके ध्यानके लिये आया है। ऐसे ही पंद्रहवें श्लोकमें 'नियतमानसः' आया है और यहाँ 'विगतकल्मषः' आया है; क्योंकि वहाँ परमात्मामें मन लगानेकी मुख्यता है और यहाँ जडताका त्याग करनेकी मुख्यता है। वहाँ तो परमात्माका चिन्तन करते-करते मन सगुण परमात्मामें तल्लीन हो गया तो संसार स्वतः ही छूट गया और यहाँ अहंता-ममतारूप कल्मषसे अर्थात् संसारसे सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद करके अपने ध्येय परमात्मामें स्थित हो गया। "

"इस प्रकार दोनोंका तात्पर्य एक ही हुआ अर्थात् वहाँ परमात्मामें लगनेसे संसार छूट गया और यहाँ संसारको छोड़कर परमात्मामें स्थित हो गया।


'सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते'- उसकी ब्रह्मके साथ जो अभिन्नता होती है, उसमें 'मैं' पनका संस्कार भी नहीं रहता, सत्ता भी नहीं रहती। यही सुखपूर्वक ब्रह्मका संस्पर्श करना है। जिस सुखमें अनुभव करनेवाला और अनुभवमें आनेवाला- ये दोनों ही नहीं रहते, वह 'अत्यन्त सुख' है। इस सुखको योगी प्राप्त कर लेता है। यह 'अत्यन्त सुख', 'अक्षय सुख' (पाँचवें अध्यायका इक्कीसवाँ श्लोक) और 'आत्यन्तिक सुख' (छठे अध्यायका इक्कीसवाँ श्लोक) - ये एक ही परमात्मतत्त्वरूप आनन्दके वाचक हैं।


सम्बन्ध-अठारहवेंसे तेईसवें श्लोकतक स्वरूपका ध्यान करनेवाले जिस सांख्ययोगीका वर्णन हुआ है, उसके अनुभवका वर्णन आगेके श्लोकमें करते हैं।"

"कल के वीडियो में हम चर्चा करेंगे अध्याय 6, श्लोक 29 की, जो आत्मा के सर्वव्यापक स्वरूप और ब्रह्म के साथ एकत्व की व्याख्या करता है। जुड़े रहें।


ध्यान के रहस्य को समझने के लिए आपका धन्यवाद। वीडियो पसंद आया हो तो लाइक और सब्सक्राइब करना न भूलें। कमेंट्स में अपने विचार जरूर साझा करें। कल फिर मिलेंगे एक और गीता श्लोक के साथ। जय श्रीकृष्ण।"

"दोस्तों, आज का श्लोक आपको कैसा लगा? क्या आप भी ये मानते हैं कि भगवद्गीता सिर्फ एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक पूरा नक्शा है? अगर हां, तो इस वीडियो को लाइक और शेयर करके अपनी सहमति ज़रूर बताएं!


याद रखें, हर समस्या का समाधान हमारे भीतर ही है। भगवद्गीता का ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हम कैसे अपने भीतर की शक्ति को पहचान सकते हैं और अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। कल मिलते हैं एक और रोमांचक श्लोक के साथ. तब तक के लिए, अपना ध्यान रखें और भगवद्गीता की सीख को अपने जीवन में उतारते रहें.


बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || जय श्री कृष्ण ||"

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