ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 श्लोक 22 - भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य ज्ञान

 

श्लोक:

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते |
लभते च ततः कामान् मयैव विहितान् हि तान् ||

अनुवाद:

"वह भक्त अपनी श्रद्धा से युक्त होकर जिस देवता की पूजा करता है, उसे मैं ही वह मनोकामना प्रदान करता हूँ, क्योंकि वह मेरी ही व्यवस्था से प्राप्त होती है।"


परिचय

भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों की आस्था और उनके विश्वास को कभी व्यर्थ नहीं जाने देते। जो व्यक्ति जिस भी भावना और श्रद्धा के साथ भक्ति करता है, भगवान उसे उसी मार्ग पर आगे बढ़ने देते हैं और उसकी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।

यह श्लोक पिछले श्लोक (7.21) की ही निरंतरता में है, जहाँ भगवान कहते हैं कि वे प्रत्येक भक्त की श्रद्धा को स्थिर करते हैं। यहाँ वे यह स्पष्ट कर रहे हैं कि भक्त की इच्छाओं की पूर्ति भी वे ही करते हैं। लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सांसारिक इच्छाएँ अस्थायी होती हैं, जबकि सच्ची भक्ति हमें स्थायी सुख प्रदान करती है।


ईश्वर द्वारा भक्त की इच्छाओं की पूर्ति

1. भक्त की श्रद्धा का सम्मान

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भक्त जिस भी देवता की पूजा करता है, वे उसकी श्रद्धा को सुदृढ़ करते हैं और उसे फल भी प्रदान करते हैं। यह उनकी कृपा का ही प्रमाण है कि भक्त चाहे जिस भी मार्ग को चुने, वह उस मार्ग पर सफल हो सकता है।

2. इच्छाएँ भगवान द्वारा दी जाती हैं

मनुष्य की सभी इच्छाएँ और उनकी पूर्ति भगवान की कृपा से ही संभव होती है। जब कोई व्यक्ति किसी देवता की आराधना करता है और उससे कुछ माँगता है, तो वह फल भी ईश्वर की अनुमति से ही मिलता है। यह हमें यह समझने की प्रेरणा देता है कि किसी भी प्रकार की उपलब्धि या सफलता के मूल में परमात्मा की शक्ति होती है।

3. सांसारिक इच्छाएँ अस्थायी होती हैं

यहाँ भगवान श्रीकृष्ण यह भी संकेत देते हैं कि जो इच्छाएँ पूरी होती हैं, वे भी अस्थायी होती हैं। मनुष्य एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा की ओर बढ़ जाता है। इसलिए सच्चा सुख केवल ईश्वर की शरण में जाने से ही प्राप्त होता है।

4. सच्ची भक्ति का महत्व

जो भक्त केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए भक्ति करता है, उसे अस्थायी सुख मिलता है, लेकिन जो भक्त निस्वार्थ भाव से ईश्वर की आराधना करता है, उसे शाश्वत आनंद प्राप्त होता है। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि भक्ति केवल इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और ईश्वर से प्रेम का साधन होना चाहिए।


क्या हमें इच्छाओं की पूर्ति के लिए भक्ति करनी चाहिए?

यह श्लोक हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम ईश्वर की भक्ति क्यों करते हैं। क्या हम उन्हें केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए पूजते हैं, या हम वास्तव में उन्हें प्रेम करते हैं?

अगर हम केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए भक्ति करेंगे, तो हमें बार-बार जन्म-मरण के चक्र में फँसना पड़ेगा, क्योंकि हमारी इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होंगी। लेकिन यदि हम सच्चे हृदय से भगवान की भक्ति करेंगे, तो हमें परम शांति और मोक्ष प्राप्त होगा।


शिक्षाएँ और निष्कर्ष

  1. ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा को मजबूत करते हैं।
  2. जो भी फल हमें मिलता है, वह भगवान की इच्छा से ही मिलता है।
  3. सांसारिक इच्छाएँ अस्थायी होती हैं, लेकिन ईश्वर की भक्ति स्थायी आनंद प्रदान करती है।
  4. सच्ची भक्ति इच्छाओं से परे होती है और आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।
  5. जो व्यक्ति केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए पूजा करता है, उसे अस्थायी फल प्राप्त होता है।

"हरि ॐ तत्सत्!" 🙏

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