ईश्वर-अर्जुन संवाद | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 23 – अस्थायी और स्थायी फल का रहस्य

 

ईश्वर-अर्जुन संवाद | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 23 – अस्थायी और स्थायी फल का रहस्य

श्लोक:

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् |
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ||

अनुवाद:

"उन अल्पबुद्धि वाले लोगों को देवताओं की पूजा से प्राप्त होने वाले फल नाशवान होते हैं, जबकि मेरे भक्त अंततः मुझ तक पहुँचते हैं।"


परिचय

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने के लिए कई गहरे आध्यात्मिक सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं। इस श्लोक में भगवान समझा रहे हैं कि जो लोग भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए देवताओं की पूजा करते हैं, उन्हें केवल अस्थायी फल मिलता है, जबकि जो मेरी भक्ति करते हैं, वे अनंत सुख प्राप्त करते हैं।

यह श्लोक पिछले श्लोक (7.22) का विस्तार है, जहाँ भगवान ने बताया कि वे ही भक्तों की इच्छाएँ पूरी करते हैं। लेकिन यहाँ वे यह स्पष्ट कर रहे हैं कि सांसारिक इच्छाएँ पूरी होने के बाद भी नाशवान होती हैं, जबकि परमात्मा की भक्ति से अमरता प्राप्त होती है।


अस्थायी बनाम स्थायी फल

1. भौतिक इच्छाएँ सीमित और नश्वर होती हैं

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति केवल देवताओं की पूजा भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए करता है, वह अल्पबुद्धि वाला होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह अस्थायी वस्तुओं को प्राप्त करने में ही लगा रहता है, जो अंततः समाप्त हो जाती हैं।

2. नश्वर देवता और उनकी पूजा का परिणाम

वेदों के अनुसार, विभिन्न देवताओं की पूजा विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए की जाती है, जैसे धन के लिए कुबेर, विद्या के लिए सरस्वती, शक्ति के लिए दुर्गा आदि। ये सभी देवता स्वयं भी मृत्यु के अधीन हैं और ब्रह्मांडीय नियमों के अनुसार कार्य करते हैं।

जो लोग केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा करते हैं, वे पुनः जन्म-मरण के चक्र में फँस जाते हैं और स्थायी शांति प्राप्त नहीं कर पाते।

3. सच्चा लाभ केवल भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में है

भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो भक्त केवल उनकी भक्ति करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है और उनके दिव्य धाम में जाता है। उनकी भक्ति करने वाला कभी इस संसार में लौटकर नहीं आता और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

4. मोह और अज्ञानता का प्रभाव

भौतिक सुखों की कामना करने वाला व्यक्ति यह नहीं समझ पाता कि असली सुख आत्मा की मुक्ति में है। वह केवल तात्कालिक लाभ के लिए देवताओं की पूजा करता है और अपने जीवन का परम लक्ष्य भूल जाता है।


क्या हमें केवल भगवान की भक्ति करनी चाहिए?

यह श्लोक स्पष्ट करता है कि किसी भी इच्छा से प्रेरित होकर की गई पूजा केवल सीमित लाभ देती है, लेकिन जब कोई निःस्वार्थ भाव से भगवान की भक्ति करता है, तो उसे अनंत लाभ मिलता है। इसलिए, सच्चा भक्त वही है जो भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाता है और उनसे प्रेम करता है, न कि केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए।


शिक्षाएँ और निष्कर्ष

  1. सांसारिक इच्छाएँ नाशवान होती हैं, इसलिए उनका पीछा करना बुद्धिमानी नहीं है।
  2. देवताओं की पूजा से मिलने वाले लाभ सीमित होते हैं, जबकि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से मोक्ष प्राप्त होता है।
  3. सच्ची भक्ति निःस्वार्थ होनी चाहिए, केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए नहीं।
  4. भगवान श्रीकृष्ण ही परम आश्रय हैं, और उनकी भक्ति करने वाले को अनंत शांति प्राप्त होती है।
  5. मोक्ष ही जीवन का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए, न कि भौतिक सुखों की प्राप्ति।

"हरि ॐ तत्सत्!" 🙏

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