गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 15 - क्या हर भक्त एक ही तरह से भक्ति करता है?
॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 15 - क्या हर भक्त एक ही तरह से भक्ति करता है?
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"🙏 हर हर गीता, हर घर गीता!
आज का सवाल – ""क्या हर भक्त एक ही तरह से भगवान की पूजा करता है?"" 🤔
जरा सोचिए... आप भक्ति कैसे करते हैं?
👉 क्या आप भगवान का ध्यान लगाते हैं?
👉 क्या आप हर रोज मंदिर जाकर प्रार्थना करते हैं?
👉 या फिर कभी-कभी जब मन दुखी होता है, तब भगवान को याद करते हैं?
अगर इन सवालों के जवाब आपको भी सोचने पर मजबूर कर रहे हैं, तो यह वीडियो आपके लिए है! 😊
आज हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 15 पर चर्चा करेंगे, जहां भगवान श्रीकृष्ण खुद इस सवाल का उत्तर दे रहे हैं! 🚀
🔔 तो जल्दी से वीडियो को लाइक कर दीजिए, और कमेंट में बताइए – आप भक्ति का कौन सा रूप अपनाते हैं?
"कल के श्लोक में हमने जाना था कि सच्चे भक्त भगवान का हर समय नाम जपते हैं, उनके भजन करते हैं, और पूर्ण श्रद्धा के साथ उनकी सेवा में लगे रहते हैं।
आप में से कितने लोग हर दिन गीता का कोई श्लोक पढ़ते हैं? ✋
अगर हां, तो कमेंट में ‘हर हर गीता’ लिखिए और अगर नहीं, तो कोई बात नहीं – आज से शुरुआत कीजिए! 😊
"
"अब आते हैं आज के महत्वपूर्ण ज्ञान पर…
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि –
""कुछ लोग मुझे भक्ति योग के द्वारा पूजते हैं, कुछ लोग ज्ञान के द्वारा मेरी आराधना करते हैं, और कुछ विविध प्रकार के यज्ञों द्वारा मेरी उपासना करते हैं।""
अब जरा सोचिए, क्या भक्ति का कोई एक ही तरीका होता है? 🤔
👉 कुछ लोग भक्ति में हर दिन पूजा-पाठ करते हैं।
👉 कुछ लोग भक्ति को ज्ञान और ध्यान के रूप में अपनाते हैं।
👉 और कुछ लोग यज्ञ, दान और सेवा के माध्यम से भगवान की भक्ति करते हैं।
अब आप बताइए –
💬 आपकी भक्ति कैसी है?
👉 कमेंट करें और हमें बताएं कि आप किस तरह भगवान को याद करते हैं!
देखिए, हम सभी अलग-अलग तरीके से भगवान की भक्ति करते हैं।
🎯 अगर आप दुखी होते हैं, तो क्या आप सबसे पहले भगवान को याद करते हैं?
🎯 या फिर आपको सफलता मिलती है, तो क्या आप भगवान को धन्यवाद देते हैं?
🎯 क्या आप केवल मंदिर जाने को ही भक्ति मानते हैं, या फिर अपने कर्मों में ईमानदारी और प्रेम को भी भक्ति का हिस्सा मानते हैं?
👉 आज का चैलेंज: आज दिनभर जो भी काम करें, उसमें भगवान को याद करें। देखिए, क्या फर्क महसूस होता है! 😊"
"श्री हरि
बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।।
अथ ध्यानम्
शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥"""
"एकत्वभावसे ज्ञानयज्ञके द्वारा ब्रह्मकी उपासना करनेवाले ज्ञानयोगियोंका और विश्वरूप परमेश्वरकी उपासना करनेवालोंका वर्णन । (श्लोक-१५)
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते । एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥
उच्चारण की विधि - ज्ञानयज्ञेन, च, अपि, अन्ये, यजन्तः, माम्, उपासते, एकत्वेन, पृथक्त्वेन, बहुधा, विश्वतोमुखम् ॥ १५ ॥
शब्दार्थ - अन्ये अर्थात् दूसरे ज्ञानयोगी, माम् अर्थात् मुझ (निर्गुण-निराकार ब्रह्मका), ज्ञानयज्ञेन अर्थात् ज्ञानयज्ञके द्वारा, एकत्वेन अर्थात् अभिन्न-भावसे, यजन्तः अर्थात् पूजन करते हुए, अपि अर्थात् भी (मेरी उपासना करते हैं), च अर्थात् और (दूसरे मनुष्य), बहुधा अर्थात् बहुत प्रकारसे स्थित, विश्वतोमुखम् अर्थात् मुझ विराट्स्वरूप परमेश्वरकी, पृथक्त्वेन अर्थात् पृथक् - भावसे, उपासते अर्थात् उपासना करते हैं।
अर्थ - दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्मका ज्ञानयज्ञके द्वारा अभिन्नभावसे पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकारसे स्थित मुझ विराट्स्वरूप परमेश्वरकी पृथक् भावसे उपासना करते हैं ॥ १५ ॥"
"व्याख्या [जैसे, भूखे आदमियोंकी भूख एक होती है और भोजन करनेपर सबकी तृप्ति भी एक होती है; परन्तु उनकी भोजनके पदार्थोंमें रुचि भिन्न-भिन्न होती है। ऐसे ही परिवर्तनशील अनित्य संसारकी तरफ लगे हुए लोग कुछ भी करते हैं, पर उनकी तृप्ति नहीं होती, वे अभावग्रस्त ही रहते हैं। जब वे संसारसे विमुख होकर केवल परमात्माकी तरफ ही चलते हैं, तब परमात्माकी प्राप्ति होनेपर उन सबकी तृप्ति हो जाती है अर्थात् वे कृतकृत्य, ज्ञात-ज्ञातव्य और प्राप्त-प्राप्तव्य हो जाते हैं। परन्तु उनकी रुचि, योग्यता, श्रद्धा, विश्वास आदि भिन्न- भिन्न होते हैं। इसलिये उनकी उपासनाएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं।]
'ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते एकत्वेन' - कई ज्ञानयोगी साधक ज्ञानयज्ञसे अर्थात् विवेकपूर्वक असत् का त्याग करते हुए सर्वत्र व्यापक परमात्मतत्त्वको और अपने वास्तविक स्वरूपको एक मानते हुए मेरे निर्गुण-निराकार स्वरूपकी उपासना करते हैं। इस परिवर्तनशील संसारकी कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं है; क्योंकि यह संसार पहले अभावरूपसे था और अब भी अभावमें जा रहा है। "
"अतः यह अभावरूप ही है। जिससे संसार उत्पन्न हुआ है, जिसके आश्रित है और जिससे प्रकाशित होता है, उस परमात्माकी सत्तासे ही इसकी सत्ता प्रतीत हो रही है। उस परमात्माके साथ हमारी एकता है- इस प्रकार उस परमात्माकी तरफ नित्य-निरन्तर दृष्टि रखना ही एकीभावसे उपासना करना है।
यहाँ 'यजन्तः' पदका तात्पर्य है कि उनके भीतर केवल परमात्मतत्त्वका ही आदर है- यही उनका पूजन है।
'पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्' - ऐसे ही कई कर्मयोगी साधक अपनेको सेवक मानकर और मात्र संसारको भगवान् का विरारूप मानकर अपने शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदिकी सम्पूर्ण क्रियाओंको तथा पदार्थोंको संसारकी सेवामें ही लगा देते हैं। इन सबको सुख कैसे हो, सबका दुःख कैसे मिटे, इनकी सेवा कैसे बने-ऐसी विचारधारासे वे अपने तन, मन, धन आदिसे जनता-जनार्दनकी सेवामें ही लगे रहते हैं, भगवत्कृपासे उनको पूर्णताकी प्राप्ति हो जाती है।
परिशिष्ट भाव - सभी साधक अपनी रुचि, योग्यता और श्रद्धा-विश्वासके अनुसार अलग-अलग साधनोंसे जिसकी भी उपासना करते हैं, वह भगवान् के समग्ररूपकी ही उपासना होती है। आगे सोलहवेंसे उन्नीसवें श्लोकतक इसी समग्ररूपका वर्णन हुआ है।
सम्बन्ध-जब सभी उपासनाएँ अलग-अलग हैं, तो फिर सभी उपासनाएँ आपकी कैसे हुईं? इसपर अलगेके चार श्लोक कहते हैं।"
"कल हम जानेंगे कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं सभी यज्ञों, कर्मों और उनके फलस्वरूप प्राप्त आनंद के मूल कारण हैं!
मतलब? भगवान ही वो शक्ति हैं, जिनकी वजह से सब कुछ चलता है!
📌 तो कल सुबह 10:30 बजे मिलते हैं! और याद रहे – Shorts का टाइम है 9:40 AM!
🙏 हर हर गीता, हर घर गीता!
आज के ज्ञान से आपको क्या सीखने को मिला? 💡
💬 कमेंट करें – ""मैं भक्ति करता/करती हूँ..."" और उसके आगे लिखिए आपका तरीका!
आपके कमेंट पढ़ने का इंतजार रहेगा! 😊
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🚀 मिलते हैं अगले वीडियो में! तब तक – Keep Learning, Keep Growing! 🚀" """हर दिन हम गीता के एक नए श्लोक की गहराई से व्याख्या करते हैं, जिससे आपको आध्यात्मिक और व्यावहारिक जीवन में मार्गदर्शन मिले।
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क्या आपने कभी गीता से किसी समस्या का समाधान पाया है?
कहते हैं कि """"अगर आप किसी समस्या से गुजर रहे हैं, तो श्रीमद्भगवद्गीता का चमत्कारिक प्रभाव यही है कि आप प्रभुजी का नाम लेकर कोई भी पृष्ठ खोलें, और उसके दाहिने पृष्ठ पर जो पहली पंक्ति होगी, वही आपकी समस्या का समाधान होगी।""""
❓ क्या आपने कभी इसे आजमाया है? 🤔
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मिलते हैं अगले वीडियो में - तब तक के लिए, श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं और गीता ज्ञान को अपनाएं!
🚩 जय श्रीकृष्ण! हर घर गीता! 🚩"""
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📜 गीता ज्ञान का अनमोल उपहार
उत्तर:🚀 ""क्या हर किसी की भक्ति का तरीका एक जैसा होता है?"" 🚀
आप कैसे भगवान की पूजा करते हैं?
👉 पूजा-पाठ और मंत्र जाप से?
👉 ध्यान और योग के माध्यम से?
👉 दान-पुण्य और सेवा से?
🔹 श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 15 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हर भक्त अलग-अलग रूपों में उनकी आराधना करता है –
1️⃣ भक्ति योग – श्रद्धा और प्रेम से भगवान की पूजा।
2️⃣ ज्ञान योग – ज्ञान और ध्यान द्वारा ईश्वर को जानना।
3️⃣ यज्ञ और सेवा – विभिन्न दान, यज्ञ, और सेवा द्वारा भगवान की भक्ति।
✅ आपकी भक्ति का तरीका क्या है?
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✅ कहते हैं कि अगर आप किसी समस्या से गुजर रहे हैं, तो श्रीमद्भगवद्गीता का चमत्कारिक प्रभाव यही है कि आप प्रभुजी का नाम लेकर कोई भी पृष्ठ खोलें, और उसके दाहिने पृष्ठ पर जो पहली पंक्ति होगी, वही आपकी समस्या का समाधान होगी।
✅ भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और जीवन को संतुलित करने में मदद करते हैं।
✅ गीता हमें सिखाती है कि कैसे परिस्थितियों को स्वीकार करें और जीवन में आगे बढ़ें।
📌 हर दिन गीता का अध्ययन करें और अपनी जीवन यात्रा को सरल बनाएं।
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