गीता का सार अध्याय 10 श्लोक 23 - रुद्रों में शंकर क्यों

 


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

🕉️ गीता का सार अध्याय 10 श्लोक 23 - रुद्रों में शंकर क्यों🌺


🕉️ 🙏 जय श्रीकृष्ण!

स्वागत है आपका “गीता का सार – जगत का सार” में।

भारतीय जीवन-दर्शन की दृष्टि से किसी भी ग्रंथ की वास्तविक उपयोगिता इस बात पर निर्भर करती है कि वह मानव को उसके परम लक्ष्य तक पहुँचाने में कितनी सहायक सिद्ध होती है। इस कसौटी पर अगर कोई ग्रंथ सर्वाधिक खरा उतरता है, तो वह है – श्रीमद्भगवद्गीता। यह न केवल हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, बल्कि आत्मा की मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

अब रुकिए — एक सवाल है आपसे...

क्या आप सच में इस दिव्य ज्ञान को अधूरा छोड़ना चाहेंगे?

थोड़ा सोचिए… जब किसी को स्वयं प्रभु की वाणी सुनने का अवसर मिलता है, तो क्या वह अवसर यूँ ही जाने देना चाहिए?

अगर आप अब तक हमें सुन रहे हैं, तो समझ लीजिए — यह कोई संयोग नहीं, बल्कि प्रभु की विशेष कृपा है।

आपके कानों तक जो शब्द पहुँच रहे हैं, वो सिर्फ आवाज़ नहीं… वो उस परम चेतना का संदेश हैं, जो आपको जगाने आई है।

हम तो बस माध्यम हैं — असली संदेशवाहक तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं।

तो बोलिए… क्या आप इस अमूल्य अवसर को अधूरा छोड़ देंगे? या हमारे साथ अंत तक इस यात्रा में जुड़ेंगे?


पिछले श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को वेदों, इंद्रियों और मनुष्यों में श्रेष्ठ बताया। अब वो आगे बढ़कर यज्ञों के विषय में अपना दिव्य परिचय दे रहे हैं।



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[आज का श्लोक – Chapter 10, Shlok 23]

"रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्। वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्॥"

📖 आज भगवान श्रीकृष्ण स्वयं को यज्ञों में "मेरे अंदर शिव (शंकर), कुबेर, अग्नि और मेरु पर्वत" के रूप में प्रकट करते हैं। इस श्लोक में भगवान बता रहे हैं कि भले ही देवताओं की अनेक शक्तियाँ हों, लेकिन उनमें उनकी झलक सबसे विशिष्ट रूप में दिखती है।


"श्री हरि

बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।।

अथ ध्यानम्

शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥




शंकरादि विभूतियोंका कथन । (श्लोक-२३)

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् । वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥

उच्चारण की विधि - रुद्राणाम्, शङ्करः, च, अस्मि, वित्तेशः, यक्षरक्षसाम्, वसूनाम्, पावकः, च, अस्मि, मेरुः, शिखरिणाम्, अहम् ॥ २३॥

शब्दार्थ - रुद्राणाम् अर्थात् एकादश रुद्रोंमें, शङ्करः अर्थात् शंकर, अस्मि अर्थात् हूँ, च अर्थात् और, यक्षरक्षसाम् अर्थात् यक्ष तथा राक्षसोंमें, वित्तेशः अर्थात् धनका स्वामी कुबेर हूँ, अहम् अर्थात् मैं, वसूनाम् अर्थात् आठ वसुओंमें, पावकः अर्थात् अग्नि, अस्मि अर्थात् हूँ, च अर्थात् और, शिखरिणाम् अर्थात् शिखरवाले पर्वतोंमें, मेरुः अर्थात् सुमेरु पर्वत, अस्मि अर्थात् हूँ।

अर्थ - मैं एकादश रुद्रोंमें शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसोंमें धनका स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओंमें अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतोंमें सुमेरु पर्वत हूँ ॥ २३ ॥




व्याख्या-'रुद्राणां शङ्करश्चास्मि' - हर, बहुरूप, त्र्यम्बक आदि ग्यारह रुद्रोंमें शम्भु अर्थात् शंकर सबके अधिपति हैं। ये कल्याण प्रदान करनेवाले और कल्याणस्वरूप हैं। इसलिये भगवान् ने इनको अपनी विभूति बताया है।




'वित्तेशो यक्षरक्षसाम्'- कुबेर यक्ष तथा राक्षसोंके अधिपति हैं और इनको धनाध्यक्षके पदपर नियुक्त किया गया है। सब यक्ष-राक्षसोंमें मुख्य होनेसे ये भगवान् की विभूति हैं।




'वसूनां पावकश्चास्मि' - धर, ध्रुव, सोम आदि आठ वसुओंमें अनल अर्थात् पावक (अग्नि) सबके अधिपति हैं। ये सब देवताओंको यज्ञकी हवि पहुँचानेवाले तथा भगवान् के मुख हैं। इसलिये इनको भगवान् ने अपनी विभूति बताया है।




'मेरुः शिखरिणामहम्'- सोने, चाँदी, ताँबे आदिके शिखरोंवाले जितने पर्वत हैं, उनमें सुमेरु पर्वत मुख्य है। यह सोने तथा रत्नोंका भण्डार है। इसलिये भगवान् ने इसको अपनी विभूति बताया है।




इस श्लोकमें जो चार विभूतियाँ कही हैं, उनमें जो कुछ विशेषता - महत्ता दीखती है, वह विभूतियोंके मूलरूप परमात्मासे ही आयी है। अतः इन विभूतियोंमें परमात्माका ही चिन्तन होना चाहिये।"




🧠 [आज की जीवन-समस्या और समाधान]

समस्या: जब हमारे जीवन में अनेक विकल्प हों और सभी में कुछ विशेष दिखे, तो किसे चुनें?

गीता समाधान: भगवान स्वयं हमें सिखाते हैं कि हर शक्ति, हर विकल्प में वह मौजूद हैं — परंतु अपने विवेक से हमें समझना है कि कौन-सा श्रेष्ठ है। शंकर में त्याग, अग्नि में शुद्धता, कुबेर में समृद्धि और मेरु में स्थिरता — इन्हीं गुणों को हम अपने निर्णयों में अपनाकर जीवन के मार्ग को सफल बना सकते हैं।




आज के शॉर्ट्स में पूछे गए सवाल का उत्तर

प्रश्न: श्रीकृष्ण के अनुसार पर्वतों में वे कौन हैं?

विकल्प:

A. हिमालय

B. कैलाश

C. त्रिकूट

D. मेरु




सही उत्तर: D. मेरु

व्याख्या: श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं — "मेरुः शिखरिणामहम्" — अर्थात् शिखर वाले पर्वतों में मैं मेरु पर्वत हूँ, जो अध्यात्म और दिव्यता का प्रतीक है।


कल हम जानेंगे — Chapter 10, Shlok 24 — जिसमें भगवान खुद को "पुरोहितों में बृहस्पति" बताते हैं। वह क्यों? जानिए अगले एपिसोड में।



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🚩 जय श्रीकृष्ण! हर घर गीता! 🚩"""


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