ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 4 से 6 #BhagavadGita #SpiritualKnowledge


 

श्री हरि


"बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय ||


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥


गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः । या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ।।


अथ ध्यानम्


शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥


यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥


वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥"


भगवतगीता अध्याय 1 श्लोक 4 से 6


"(श्लोक-४)


अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥


अत्र = यहाँ (पाण्डवोंकी सेनामें), शूराः = बड़े-बड़े शूरवीर हैं, महेष्वासाः = (जिनके) बहुत बड़े-बड़े धनुष हैं, च = तथा (जो), युधि = युद्धमें, भीमार्जुनसमाः भीम और अर्जुनके समान हैं। (उनमें), युयुधानः युयुधान (सात्यकि), विराटः = राजा विराट, च = और, महारथः महारथी, द्रुपदः = द्रुपद (भी हैं।), धृष्टकेतुः = धृष्टकेतु, च = और, चेकितानः = चेकितान, च = तथा, वीर्यवान् = पराक्रमी, काशिराजः = काशिराज (भी हैं।), पुरुजित् = पुरुजित्, च = और, कुन्तिभोजः = कुन्तिभोज (- ये दोनों भाई), च = तथा, नरपुङ्गवः मनुष्योंमें श्रेष्ठ, शैब्यः = शैब्य (भी हैं।), विक्रान्तः पराक्रमी, युधामन्युः = युधामन्यु, च = और, वीर्यवान् = पराक्रमी, उत्तौजाः उत्तमौजा (भी हैं।), सौभद्रः = सुभद्रापुत्र अभिमन्यु, च और, द्रौपदेयाः = द्रौपदीके पाँचों पुत्र (भी हैं।), सर्वे, एव (ये) सब-के-सब, महारथाः = महारथी हैं।


व्याख्या-'अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि'- जिनसे बाण चलाये जाते हैं, फेंके जाते हैं, उनका नाम 'इष्वास' अर्थात् धनुष है। ऐसे बड़े-बड़े इष्वास (धनुष) जिनके पास हैं, वे सभी 'महेष्वास' हैं। तात्पर्य है कि बड़े धनुषोंपर बाण चढ़ाने एवं प्रत्यंचा खींचनेमें बहुत बल लगता है। जोरसे खींचकर छोड़ा गया बाण विशेष मार करता है। ऐसे बड़े-बड़े धनुष पासमें होनेके कारण ये सभी बहुत बलवान् और शूरवीर हैं। ये मामूली योद्धा नहीं हैं। युद्धमें ये भीम और अर्जुनके समान हैं अर्थात् बलमें ये भीमके समान और अस्त्र-शस्त्रकी कलामें ये अर्जुनके समान हैं।


'युयुधानः '- युयुधान- (सात्यकि) ने अर्जुनसे अस्त्र-शस्त्रकी विद्या सीखी थी। इसलिये भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा दुर्योधनको नारायणी सेना देनेपर भी वह कृतज्ञ होकर अर्जुनके पक्षमें ही रहा, दुर्योधनके पक्षमें नहीं गया। द्रोणाचार्यके मनमें अर्जुनके प्रति द्वेषभाव पैदा करनेके लिये दुर्योधन महारथियोंमें सबसे पहले अर्जुनके शिष्य युयुधानका नाम लेता है। तात्पर्य है कि इस अर्जुनको तो देखिये ! इसने आपसे ही अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखा है और आपने अर्जुनको यह वरदान भी दिया है कि संसारमें तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर न हो, ऐसा प्रयत्न करूँगा *।


* प्रयतिष्ये तथा कर्तुं यथा नान्यो धनुर्धरः । त्वत्समो भविता लोके सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ।।


(महाभारत, आदि० १३१। २७)


इस तरह आपने तो अपने शिष्य अर्जुनपर इतना स्नेह रखा है, पर वह कृतघ्न होकर आपके विपक्षमें लड़नेके लिये खड़ा है, जबकि अर्जुनका शिष्य युयुधान उसीके पक्षमें खड़ा है। 


[युयुधान महाभारतके युद्धमें न मरकर यादवोंके आपसी युद्धमें मारे गये ।]


'विराटश्च' - जिसके कारण हमारे पक्षका वीर सुशर्मा अपमानित किया गया, आपको सम्मोहन अस्त्रसे मोहित होना पड़ा और हमलोगोंको भी जिसकी गायें छोड़कर युद्धसे भागना पड़ा, वह राजा विराट आपके प्रतिपक्षमें खड़ा है।

 

राजा विराटके साथ द्रोणाचार्यका ऐसा कोई वैरभाव या द्वेषभाव नहीं था; परन्तु दुर्योधन यह समझता है कि अगर युयुधानके बाद मैं द्रुपदका नाम लूँ तो द्रोणाचार्यके मनमें यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पाण्डवोंके विरोधमें मेरेको उकसाकर युद्धके लिये विशेषतासे प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मनमें पाण्डवोंके प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है। इसलिये दुर्योधन द्रुपदके नामसे पहले विराटका 

नाम लेता है, जिससे द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और विशेषतासे युद्ध करें।


[राजा विराट उत्तर, श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रोंसहित महाभारत युद्धमें मारे गये ।]


'द्रुपदश्च महारथः' - आपने तो द्रुपदको पहलेकी मित्रता याद दिलायी, पर उसने सभामें यह कहकर आपका अपमान किया कि मैं राजा हूँ और तुम भिक्षुक हो; अतः मेरी-तुम्हारी मित्रता कैसी ? तथा वैरभावके कारण आपको मारनेके लिये पुत्र भी पैदा किया, वही महारथी द्रुपद आपसे लड़नेके लिये विपक्षमें खड़ा है। [राजा द्रुपद युद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये।]


(श्लोक-५)


धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ।।


'धृष्टकेतुः' - यह धृष्टकेतु कितना मूर्ख है कि जिसके पिता शिशुपालको कृष्णने भरी सभामें चक्रसे मार डाला था, उसी कृष्णके पक्षमें यह लड़नेके लिये खड़ा है!


[धृष्टकेतु द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये ।]


'चेकितानः' - सब यादवसेना तो हमारी ओरसे लड़नेके लिये तैयार है और यह यादव चेकितान पाण्डवोंकी सेनामें खड़ा है! [चेकितान दुर्योधनके हाथसे मारे गये ।]


'काशिराजश्च वीर्यवान्' - यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है। यह भी पाण्डवोंकी सेनामें खड़ा है। इसलिये आप सावधानीसे युद्ध करना; क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है।


[काशिराज महाभारत युद्धमें मारे गये ।]


'पुरुजित्कुन्तिभोजश्च' - यद्यपि पुरुजित् और कुन्तिभोज-ये दोनों कुन्तीके भाई होनेसे हमारे और पाण्डवोंके मामा हैं, तथापि इनके मनमें पक्षपात होनेके कारण ये हमारे विपक्षमें युद्ध करनेके लिये खड़े हैं।


[पुरुजित् और कुन्तिभोज- दोनों ही युद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये ।]


'शैब्यश्च नरपुङ्गवः' - यह शैब्य युधिष्ठिरका श्वशुर है। यह मनुष्योंमें श्रेष्ठ और बहुत बलवान् है। परिवारके नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है। परन्तु यह पाण्डवोंके ही पक्षमें खड़ा है।


(श्लोक-६)


युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ।।


वीर्यवान् ' - 'युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च पांचालदेशके बड़े बलवान् और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा मेरे वैरी अर्जुनके रथके पहियोंकी रक्षामें नियुक्त किये गये हैं। आप इनकी ओर भी नजर रखना।


[रातमें सोते हुए इन दोनोंको अश्वत्थामाने मार डाला ।]


'सौभद्रः'- यह कृष्णकी बहन सुभद्राका पुत्र अभिमन्यु है। यह बहुत शूरवीर है। इसने गर्भमें ही चक्रव्यूह-भेदनकी विद्या सीखी है। अतः चक्रव्यूह रचनाके समय आप इसका खयाल रखें।


[युद्धमें दुःशासनपुत्रके द्वारा अन्यायपूर्वक सिरपर गदाका प्रहार करनेसे अभिमन्यु मारे गये ।]


'द्रौपदेयाश्च'- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव-इन पाँचोंके द्वारा द्रौपदीके गर्भसे क्रमशः प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं। इन पाँचोंको आप देख लीजिये।


द्रौपदीने भरी सभामें मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदयको जलाया है, उसीके इन पाँचों पुत्रोंको युद्धमें मारकर आप उसका बदला चुकायें। [रातमें सोते हुए इन पाँचोंको अश्वत्थामाने मार डाला।]


'सर्व एव महारथाः'- ये सब के सब महारथी हैं। जो शास्त्र और शस्त्रविद्या-दोनोंमें प्रवीण हैं और युद्धमें अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओंका संचालन कर सकता है, उस वीर पुरुषको 'महारथी' कहते हैं*।


* एको दशसहस्राणि योधयेद् यस्तु धन्विनाम् । शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च महारथ इति स्मृतः ॥


ऐसे बहुत-से महारथी पाण्डव-सेनामें खड़े हैं।


सम्बन्ध-द्रोणाचार्यके मनमें पाण्डवोंके प्रति द्वेष पैदा करने और युद्धके लिये जोश दिलानेके लिये दुर्योधनने पाण्डव-सेनाकी विशेषता बतायी। दुर्योधनके मनमें विचार आया कि द्रोणाचार्य पाण्डवोंके पक्षपाती हैं ही; अतः वे पाण्डव-सेनाकी महत्ता सुनकर मेरेको यह कह सकते हैं कि जब पाण्डवोंकी सेनामें इतनी विशेषता है, तो उनके साथ तू सन्धि क्यों नहीं कर लेता ? ऐसा विचार आते ही दुर्योधन आगेके तीन श्लोकोंमें अपनी सेनाकी विशेषता बताता है।"


बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || जय श्री कृष्ण ||

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