ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 29 - आत्मा, परमात्मा और योग का रहस्य

 


भगवद्गीता के अध्याय 6, श्लोक 29 का क्या महत्व है?

"Today's Video Link -

https://youtu.be/_LYApEgnSYc

Blog - https://vickyggp.blogspot.com/2025/01/6-29.html

अध्याय 6, श्लोक 29 में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा और परमात्मा के एकत्व पर प्रकाश डालते हैं। इस श्लोक में बताया गया है कि योग का अभ्यास करने वाला व्यक्ति हर जीव में भगवान को देखता है और हर प्राणी में एकता का अनुभव करता है। यह श्लोक हमें सिखाता है कि योग के माध्यम से हम अपनी दृष्टि को व्यापक बनाकर सभी में भगवान को देख सकते हैं।

इस विषय पर और अधिक जानने के लिए हमारा वीडियो देखें!


🌟 आज के ज्ञान का सार 🌟

भगवद्गीता अध्याय 6, श्लोक 29 में भगवान श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि योग के माध्यम से हर जीव में भगवान को देखा जा सकता है। इस दिव्य ज्ञान को जानने के लिए हमारा नया वीडियो देखें।

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"श्री हरि

बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय ||"

"नमस्कार मित्रों! स्वागत है आपका हमारी भगवद्गीता श्रृंखला में। आज हम अध्याय 6, श्लोक 29 की गहराइयों में उतरेंगे। यह श्लोक आत्मा और परमात्मा के एकत्व पर प्रकाश डालता है। तो चलिए, शुरू करते हैं इस दिव्य यात्रा को!


पिछले वीडियो में हमने अध्याय 6, श्लोक 28 की चर्चा की, जहाँ हमने ध्यान और योग के प्रभाव से अंतर्मन की शांति के बारे में जाना। अगर आपने वह वीडियो नहीं देखा है, तो अवश्य देखें।


आज के श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि हर जीव में भगवान को कैसे देखा जा सकता है। यह श्लोक हमारी दृष्टि को विस्तृत करता है और हमें योग की सच्ची परिभाषा सिखाता है।"


"॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥


""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।।


अथ ध्यानम्


शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥


यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥


वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥"


"भगवतगीता अध्याय 6 श्लोक 29"

"सांख्ययोगीके व्यवहारकालकी स्थितिका कथन ।


(श्लोक-२९)


सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥


उच्चारण की विधि - सर्वभूतस्थम्, आत्मानम्, सर्वभूतानि, च, आत्मनि, ईक्षते, योगयुक्तात्मा, सर्वत्र, समदर्शनः ॥ २९ ॥


शब्दार्थ - योगयुक्तात्मा अर्थात् सर्वव्यापी अनन्त चेतनमें एकीभावसे स्थितिरूप योगसे युक्त आत्मावाला (तथा), सर्वत्र अर्थात् सबमें, समदर्शनः अर्थात् समभावसे देखनेवाला योगी, आत्मानम् अर्थात् आत्माको, सर्वभूतस्थम् अर्थात् सम्पूर्ण भूतोंमें स्थित, च अर्थात् और, सर्वभूतानि अर्थात् सम्पूर्ण भूतोंको, आत्मनि अर्थात् आत्मामें (कल्पित), ईक्षते अर्थात् देखता है।


अर्थ - सर्वव्यापी अनन्त चेतनमें एकीभावसे स्थितिरूप योगसे युक्त आत्मावाला तथा सबमें समभावसे देखनेवाला योगी आत्माको सम्पूर्ण भूतोंमें स्थित और सम्पूर्ण भूतोंको आत्मामें कल्पित देखता है ॥ २९ ॥"

"व्याख्या- 'ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः '- सब जगह एक सच्चिदानन्दघन परमात्मा ही परिपूर्ण हैं। जैसे मनुष्य खाँड़से बने हुए अनेक तरहके खिलौनोंके नाम, रूप, आकृति आदि भिन्न-भिन्न होनेपर भी उनमें समानरूपसे एक खाँड़को, लोहेसे बने हुए अनेक तरहके अस्त्र-शस्त्रोंमें एक लोहेको, मिट्टीसे बने हुए अनेक तरहके बर्तनोंमें एक मिट्टीको और सोनेसे बने हुए आभूषणोंमें एक सोनेको ही देखता है, ऐसे ही ध्यानयोगी तरह-तरहकी वस्तु, व्यक्ति आदिमें समरूपसे एक अपने स्वरूपको ही देखता है।


'योगयुक्तात्मा' - इसका तात्पर्य है कि ध्यानयोगका अभ्यास करते-करते उस योगीका अन्तःकरण अपने स्वरूपमें तल्लीन हो गया है। [तल्लीन होनेके बाद उसका अन्तःकरणसे सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है, जिसका संकेत 'सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि' पदोंसे किया गया है।]


'सर्वभूतस्थमात्मानम् ' - वह सम्पूर्ण प्राणियोंमें अपनी आत्माको अपने सत्स्वरूपको स्थित देखता है। जैसे साधारण प्राणी सारे शरीरमें अपने-आपको देखता है अर्थात् शरीरके सभी अवयवोंमें, अंशोंमें 'मैं' को ही पूर्णरूपसे देखता है, ऐसे ही समदर्शी पुरुष सब प्राणियोंमें अपने स्वरूपको ही स्थित देखता है।"

"किसीको नींदमें स्वप्न आये, तो वह स्वप्नमें स्थावर-जंगम प्राणी-पदार्थ देखता है। पर नींद खुलनेपर वह स्वप्नकी सृष्टि नहीं दीखती; अतः स्वप्नमें स्थावर जंगम आदि सब कुछ स्वयं ही बना है। जाग्रत्-अवस्थामें किसी जड या चेतन प्राणी-पदार्थकी याद आती है, तो वह मनसे दीखने लग जाता है और याद हटते ही वह सब दृश्य अदृश्य हो जाता है; अतः यादमें सब कुछ अपना मन ही बना है। ऐसे ही ध्यानयोगी सम्पूर्ण प्राणियोंमें अपने स्वरूपको स्थित देखता है। स्थित देखनेका तात्पर्य है कि सम्पूर्ण प्राणियोंमें सत्तारूपसे अपना ही स्वरूप है। स्वरूपके सिवाय दूसरी कोई सत्ता ही नहीं है; क्योंकि संसार एक क्षण भी एकरूप नहीं रहता, प्रत्युत प्रतिक्षण बदलता ही रहता है। संसारके किसी रूपको एक बार देखनेपर अगर दुबारा उसको कोई देखना चाहे, तो देख ही नहीं सकता; क्योंकि वह पहला रूप बदल गया। ऐसे परिवर्तनशील वस्तु, व्यक्ति आदिमें योगी सत्तारूपसे अपरिवर्तनशील अपने स्वरूपको ही देखता है।


'सर्वभूतानि चात्मनि'- वह सम्पूर्ण प्राणियोंको अपने अन्तर्गत देखता है अर्थात् अपने सर्वगत, असीम, सच्चिदानन्दघन स्वरूपमें ही सभी प्राणियोंको तथा सारे संसारको देखता है। "

"जैसे एक प्रकाशके अन्तर्गत लाल, पीला, काला, नीला आदि जितने रंग दीखते हैं, वे सभी प्रकाशसे ही बने हुए हैं और प्रकाशमें ही दीखते हैं और जैसे जितनी वस्तुएँ दीखती हैं, वे सभी सूर्यसे ही उत्पन्न हुई हैं और सूर्यके प्रकाशमें ही दीखती हैं, ऐसे ही वह योगी सम्पूर्ण प्राणियोंको अपने स्वरूपसे ही पैदा हुए, स्वरूपमें ही लीन होते हुए और स्वरूपमें ही स्थित देखता है। तात्पर्य है कि उसको जो कुछ दीखता है, वह सब अपना स्वरूप ही दीखता है।


इस श्लोकमें प्राणियोंमें तो अपनेको स्थित बताया है, पर अपनेमें प्राणियोंको स्थित नहीं बताया। ऐसा कहनेका तात्पर्य है कि प्राणियोंमें तो अपनी सत्ता है, पर अपनेमें प्राणियोंकी सत्ता नहीं है। कारण कि स्वरूप तो सदा एकरूप रहनेवाला है, पर प्राणी उत्पन्न और नष्ट होनेवाले हैं।


इस श्लोकका तात्पर्य यह हुआ कि व्यवहारमें तो प्राणियोंके साथ अलग-अलग बर्ताव होता है, परन्तु अलग- अलग बर्ताव होनेपर भी उस समदर्शी योगीकी स्थितिमें कोई फर्क नहीं पड़ता ।


सम्बन्ध-भगवान् ने चौदहवें-पन्द्रहवें श्लोकोंमें सगुण-साकारका ध्यान करनेवाले जिस भक्तियोगीका वर्णन किया था, उसके अनुभवकी बात आगेके श्लोकमें कहते हैं।"

"कल के वीडियो में हम अध्याय 6, श्लोक 30 पर चर्चा करेंगे, जहाँ भगवान यह बताएंगे कि जो भक्त हर जगह भगवान को देखता है, भगवान भी उसे हर जगह देखते हैं।


इस श्लोक के माध्यम से हमने जाना कि योग के द्वारा आत्मा और परमात्मा का एकत्व कैसे अनुभव किया जा सकता है। अगर आपको यह वीडियो अच्छा लगा हो, तो इसे लाइक और शेयर करें। हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएँ ताकि आप अगले वीडियो की जानकारी पा सकें। जय श्रीकृष्ण!"

"दोस्तों, आज का श्लोक आपको कैसा लगा? क्या आप भी ये मानते हैं कि भगवद्गीता सिर्फ एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक पूरा नक्शा है? अगर हां, तो इस वीडियो को लाइक और शेयर करके अपनी सहमति ज़रूर बताएं!


याद रखें, हर समस्या का समाधान हमारे भीतर ही है। भगवद्गीता का ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हम कैसे अपने भीतर की शक्ति को पहचान सकते हैं और अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। कल मिलते हैं एक और रोमांचक श्लोक के साथ. तब तक के लिए, अपना ध्यान रखें और भगवद्गीता की सीख को अपने जीवन में उतारते रहें.


बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || जय श्री कृष्ण ||"

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