ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 39 - आत्मा की गहराई का ज्ञान #BhagavadGita


"श्री हरि

बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय ||"
"नमस्कार मित्रों!
भगवद गीता के दिव्य ज्ञान के इस सफर में आपका स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे अध्याय 6 के श्लोक 39 पर, जहाँ भगवान कृष्ण आत्मा की गहराई और विश्वास की ताकत के बारे में बता रहे हैं। आइए इस अद्भुत संवाद का आनंद लें! पिछले वीडियो में हमने अध्याय 6 के श्लोक 38 पर चर्चा की थी, जहाँ भगवान कृष्ण ने आत्मज्ञान की राह में बाधाओं और संदेह की बात की थी। आज हम इसे आगे बढ़ाएंगे। आज हम जानेंगे कि भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा की खोज और विश्वास की ताकत के बारे में क्या बताते हैं। यह श्लोक हमारे जीवन में अडिग विश्वास और मार्गदर्शन का प्रतीक है।"

"॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।।

अथ ध्यानम्

शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥"

"भगवतगीता अध्याय 6 श्लोक 39"

"संशयनिवारण करनेके लिये अर्जुनकी भगवान्से प्रार्थना । 

(श्लोक-३९)

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः । त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥

उच्चारण की विधि - एतत्, मे, संशयम्, कृष्ण, छेत्तुम्, अर्हसि, अशेषतः, त्वदन्यः, संशयस्य, अस्य, छेत्ता, न, हि, उपपद्यते॥ ३९॥

शब्दार्थ - कृष्ण अर्थात् हे श्रीकृष्ण!, मे अर्थात् मेरे, एतत् अर्थात् इस, संशयम् अर्थात् संशयको, अशेषतः अर्थात् सम्पूर्णरूपसे, छेत्तुम्अर्थात् छेदन करनेके लिये (आप ही), अर्हसि अर्थात् योग्य हैं, हि अर्थात् क्योंकि, त्वदन्यः अर्थात् आपके सिवा दूसरा, अस्य अर्थात् इस, संशयस्य अर्थात् संशयका, छेत्ता अर्थात् छेदन करनेवाला, न उपपद्यते अर्थात् मिलना सम्भव नहीं है।

अर्थ - हे श्रीकृष्ण ! मेरे इस संशयको सम्पूर्णरूपसे छेदन करनेके लिये आप ही योग्य हैं, क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशयका छेदन करनेवाला मिलना सम्भव नहीं है ॥ ३९ ॥"
"व्याख्या'एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः ' - परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य होनेसे साधक पापकर्मोंसे तो सर्वथा रहित हो गया, इसलिये वह नरकोंमें तो जा ही नहीं सकता और स्वर्गका ध्येय न रहनेसे स्वर्गमें भी जा नहीं सकता। मनुष्ययोनिमें आनेका उसका उद्देश्य नहीं है, इसलिये वह उसमें भी नहीं आ सकता और परमात्मप्राप्तिके साधनसे भी विचलित हो गया। ऐसा साधक क्या छिन्न-भिन्न बादलकी तरह नष्ट तो नहीं हो जाता ? यह मेरा संशय है।

'त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते' - इस संशयका सर्वथा छेदन करनेवाला अन्य कोई हो नहीं सकता। इसका तात्पर्य है कि शास्त्रकी कोई गुत्थी हो, शास्त्रका कोई गहन विषय हो, कोई ऐसी कठिन पंक्ति हो, जिसका अर्थ न लगता हो, तो उसको शास्त्रोंका ज्ञाता कोई विद्वान् भी समझा सकता है। परन्तु योगभ्रष्टकी क्या गति होती है ? इसका उत्तर वह नहीं दे सकता। हाँ, योगी कुछ हदतक इसको जान सकता है, पर वह सम्पूर्ण प्राणियोंकी गति-आगतिको अर्थात् जाने और आनेको नहीं जान सकता; क्योंकि वह 'युंजान योगी' है अर्थात् अभ्यास करके योगी बना है। अतः वह वहींतक जान सकता है, जहाँतक उसकी जाननेकी हद है। "
"परन्तु आप तो 'युक्त योगी' हैं अर्थात् आप बिना अभ्यास, परिश्रमके सर्वत्र सब कुछ जाननेवाले हैं। आपके समान जानकार कोई हो सकता ही नहीं। आप साक्षात् भगवान् हैं और सम्पूर्ण प्राणियोंकी गति-आगतिको जाननेवाले हैं * ।

* उत्पत्तिं प्रलयं चैव भूतानामागतिं गतिम् । वेत्ति विद्यामविद्यां च स वाच्यो भगवानिति ॥

(विष्णुपुराण ६।५। ७८; नारदपुराण, पूर्व० ४६।२१)

'जो सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति और प्रलयको, गति और अगतिको एवं विद्या और अविद्याको जानता है, वही भगवान् कहलानेयोग्य है।'

अतः इस योगभ्रष्टके गतिविषयक प्रश्नका उत्तर आप ही दे सकते हैं। आप ही मेरे इस संशयको दूर कर सकते हैं। परिशिष्ट भाव - अर्जुनको भगवान् श्रीकृष्णकी भगवत्तापर विश्वास था, तभी यहाँ वे योगभ्रष्टकी गतिके विषयमें प्रश्न करते हैं और कहते हैं कि इस बातको आपके सिवाय दूसरा कोई बता नहीं सकता। भगवान् श्रीकृष्णकी भगवत्तापर विश्वास होनेके कारण ही उन्होंने एक अक्षौहिणी सशस्त्र नारायणी सेनाको छोड़कर निःशस्त्र भगवान् को ही स्वीकार किया था !

सम्बन्ध-अड़तीसवें श्लोकमें अर्जुनने शंका की थी कि संसारसे और साधनसे च्युत हुए साधकका कहीं पतन तो नहीं हो जाता ? उसका समाधान करनेके लिये भगवान् आगेका श्लोक कहते हैं।"

कल के वीडियो में हम चर्चा करेंगे अध्याय 6 के श्लोक 40 पर, जहाँ भगवान कृष्ण आत्मज्ञान प्राप्त करने वालों के भविष्य के बारे में बताते हैं। इसे मिस न करें! इस वीडियो को लाइक करें, सब्सक्राइब करें और अपने मित्रों के साथ साझा करें। आपके विचार हमारे लिए अमूल्य हैं, इसलिए कृपया अपने कमेंट्स जरूर लिखें। कल फिर मिलेंगे नए ज्ञान के साथ!
दोस्तों, आज का श्लोक आपको कैसा लगा? क्या आप भी ये मानते हैं कि भगवद्गीता सिर्फ एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक पूरा नक्शा है? अगर हां, तो इस वीडियो को लाइक और शेयर करके अपनी सहमति ज़रूर बताएं! याद रखें, हर समस्या का समाधान हमारे भीतर ही है। भगवद्गीता का ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हम कैसे अपने भीतर की शक्ति को पहचान सकते हैं और अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। कल मिलते हैं एक और रोमांचक श्लोक के साथ. तब तक के लिए, अपना ध्यान रखें और भगवद्गीता की सीख को अपने जीवन में उतारते रहें. बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || जय श्री कृष्ण ||

Comments

Popular posts from this blog

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 34 - 🧠 मन, बुद्धि और भक्ति से पाओ भगवान को!

📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 22 "परम सत्य की प्राप्ति का मार्ग"