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Showing posts from March, 2025

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 16 से 18 - भगवान ही सबकुछ हैं!

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 16 से 18 - भगवान ही सबकुछ हैं!  #Geetakasaar #jagatkasaar "🔔 नमस्कार दोस्तों! क्या कभी आपने सोचा है कि भगवान सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि हमारे हर कर्म, हर भक्ति, हर यज्ञ में समाहित हैं? आज हम श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 9 के श्लोक 16-18 को समझेंगे, जहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे स्वयं यज्ञ, मंत्र, हवन, स्वाहा, औषधि, और फल हैं। तो, क्या हमारी पूजा और कर्मों का सीधा संबंध भगवान से है? आइए इसे गहराई से समझें! 👇 सबसे पहले, एक सवाल आप सबके लिए! 💡 क्या आपने कभी किसी कठिन समय में गीता का कोई श्लोक पढ़कर समाधान पाया है? कमेंट में बताइए!" "पिछले श्लोक (अध्याय 9 श्लोक 15) में हमने जाना कि भगवान की भक्ति के विभिन्न रूप होते हैं और लोग अपने-अपने तरीके से भगवान को पाने की कोशिश करते हैं। आज हम इसे और विस्तार से समझेंगे कि क्यों श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे ही हर यज्ञ, पूजा और मंत्र का मूल हैं।" "👉 श्रीकृष्ण कहते हैं: ""मैं ही यज्ञ हूँ, मैं ही हवन हूँ, मैं ही मंत्र हूँ, मैं ही फल देने वाला हूँ।...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 15 - क्या हर भक्त एक ही तरह से भक्ति करता है?

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 15 - क्या हर भक्त एक ही तरह से भक्ति करता है? #Geetakasaar #jagatkasaar "🙏 हर हर गीता, हर घर गीता! आज का सवाल – ""क्या हर भक्त एक ही तरह से भगवान की पूजा करता है?"" 🤔 जरा सोचिए... आप भक्ति कैसे करते हैं? 👉 क्या आप भगवान का ध्यान लगाते हैं? 👉 क्या आप हर रोज मंदिर जाकर प्रार्थना करते हैं? 👉 या फिर कभी-कभी जब मन दुखी होता है, तब भगवान को याद करते हैं? अगर इन सवालों के जवाब आपको भी सोचने पर मजबूर कर रहे हैं, तो यह वीडियो आपके लिए है! 😊 आज हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 15 पर चर्चा करेंगे, जहां भगवान श्रीकृष्ण खुद इस सवाल का उत्तर दे रहे हैं! 🚀 🔔 तो जल्दी से वीडियो को लाइक कर दीजिए, और कमेंट में बताइए – आप भक्ति का कौन सा रूप अपनाते हैं?

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 14 - क्या सच्चे भक्त हमेशा भगवान का भजन करते हैं?

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  💬 All Blogs - https://vickyggp.blogspot.com 📺 Full Youtube Playlist - https://youtube.com/playlist?list=PLmqdCCZAKuDiSQUJGe114tsIGg0Z6K658&si=acFtaccCWhZ-GrEF 🎙️Add Podcast to your Youtube Music - https://media.rss.com/apkamohitsharma/feed.xml 💬 Join our WhatsApp Channel for more details and update - https://whatsapp.com/channel/0029Vb4wtr31noz8J0GHfT01 🎙️ Kuku FM - https://kuku.page.link/?apn=com.vlv.aravali&link=http://kukufm.com/show/1a1e6296-7af4-4d21-bf14-c84ce5113ecc/?utm_source=share_ch&lang=english 💬 Quora - https://qr.ae/pYoAFM 🎙️RSS - https://rss.com/podcasts/apkamohitsharma ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 14 - क्या सच्चे भक्त हमेशा भगवान का भजन करते हैं? #Geetakasaar #jagatkasaar "🔔 ""हर हर गीता, हर घर गीता!"" ""क्या आप जानते हैं कि सच्चे भक्त भगवान की भक्ति में हमेशा लीन रहते हैं?"" आज हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 14 की व्याख्या करेंगे, जिसमें श्रीकृष्ण बताते हैं ...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 13 - भगवान के सच्चे भक्त कैसे होते हैं?

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  🔹 "भगवान के सच्चे भक्त कैसे होते हैं?" – श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 9, श्लोक 13 📜 आज का श्लोक: "महत्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः। भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्॥" 📖 श्लोक का अर्थ: "हे पार्थ! जो महान आत्माएँ होती हैं, वे दैवी प्रकृति को अपनाकर मेरी शरण में आती हैं। वे मुझे समस्त भूतों का मूल कारण और अविनाशी मानकर अनन्य भाव से मेरी भक्ति करते हैं।" 🔶 श्लोक की विस्तृत व्याख्या 1️⃣ सच्चे भक्तों की पहचान ✅ वे दैवी प्रकृति को अपनाते हैं। ✅ वे निःस्वार्थ भाव से भगवान की भक्ति करते हैं। ✅ वे अहंकार और मोह से मुक्त होते हैं। 2️⃣ दैवी प्रकृति क्या है? 🔸 दैवी स्वभाव के भक्त सत्य, करुणा और प्रेम से भरे होते हैं। 🔸 वे जीवनभर भगवान की भक्ति करते हैं और उनकी कृपा में विश्वास रखते हैं। 📌 क्या आपने कभी ऐसे व्यक्ति को देखा है जो सच्ची भक्ति करता हो? 💬 कमेंट करें और अपने विचार साझा करें! 🔷 जीवन में इस श्लोक का महत्व 👉 भगवान की शरण में जाने से क्या लाभ होता है? ✔️ व्यक्ति जीवन के मोह-माया से मुक्त हो जाता है। ✔️ उसे आध्यात्मिक...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 12 - भगवान की महिमा

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🔹 "अज्ञान क्यों नहीं पहचान पाता भगवान को?" – श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 9, श्लोक 12 📜 आज का श्लोक: "मोगाशा मोगकर्माणो मोगज्ञानविचेतसः। राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः॥" 📖 श्लोक का अर्थ: "जो लोग व्यर्थ आशाओं में फँसे रहते हैं, जिनके कर्म व्यर्थ होते हैं, जिनका ज्ञान व्यर्थ होता है, वे मोह में फँसकर राक्षसी और आसुरी प्रकृति को प्राप्त कर लेते हैं।" 🔶 श्लोक की विस्तृत व्याख्या 1️⃣ क्यों कुछ लोग भगवान को नहीं पहचान पाते? ✅ वे मोह (भ्रम) में रहते हैं। ✅ वे भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं और आत्मिक शांति को भूल जाते हैं। ✅ वे अपने अहंकार के कारण भगवान की सत्ता को स्वीकार नहीं कर पाते। 2️⃣ राक्षसी और आसुरी प्रकृति क्या है? 🔸 राक्षसी प्रकृति: स्वार्थी, हिंसक और क्रोध से भरे लोग। 🔸 आसुरी प्रकृति: अधर्म में लिप्त, अहंकारी और नास्तिक विचारधारा वाले लोग। 📌 क्या आपको कभी ऐसा अनुभव हुआ है कि कोई व्यक्ति भगवान के अस्तित्व को ही नकार दे? 💬 कमेंट करें और अपनी राय साझा करें! 🔷 जीवन में इस श्लोक का महत्व 👉 क्या होगा अगर हम भगवान को पहचान...

श्रीमद्भगवद गीता - अध्याय 9 श्लोक 11 का गूढ़ रहस्य - अज्ञानी क्यों नहीं पहचान पाते भगवान को?

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  अज्ञानी क्यों नहीं पहचान पाते भगवान को? श्रीमद्भगवद गीता - अध्याय 9 श्लोक 11 का गूढ़ रहस्य 🔹 आज का श्लोक: "अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्। परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्॥" 📜 श्लोक का अर्थ: "अज्ञानी लोग मुझे एक साधारण मनुष्य समझते हैं और मेरी दिव्यता को नहीं पहचानते। वे मेरी वास्तविक स्थिति को नहीं जानते कि मैं सम्पूर्ण सृष्टि का ईश्वर हूँ।" 🔷 श्रीमद्भगवद गीता 9.11 की विस्तृत व्याख्या 1️⃣ अज्ञानता का पर्दा – क्यों लोग भगवान को नहीं पहचान पाते? श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में बताया है कि मूढ़ (अज्ञानी) लोग उन्हें केवल एक सामान्य मनुष्य समझते हैं। ✅ मनुष्य अपने भौतिक अनुभवों और सीमित बुद्धि से भगवान को परखने की कोशिश करता है। ✅ यह संसार माया (भ्रम) की शक्ति से ढका हुआ है, जिसके कारण सत्य को पहचानना कठिन हो जाता है। ✅ हमारे पास जो भी सीमित ज्ञान है, वह हमें केवल भौतिक जगत तक सीमित रखता है और भगवान की वास्तविक दिव्यता को देखने से रोकता है। उदाहरण: 🔸 जैसे एक साधारण व्यक्ति समुद्र को केवल किनारे से देखता है और उसकी गहराई का अनुमान नहीं लगा पाता, वैसे ही सामा...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 10 - भगवान की माया और सृष्टि संचालन

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  भगवान की माया और सृष्टि का संचालन | श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 10 | गीता का सार 📖 प्रस्तावना श्रीमद्भगवद गीता का हर श्लोक हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। गीता के नवम अध्याय (राजविद्या राजगुह्य योग) में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उस रहस्य को समझा रहे हैं, जिसे जानकर हर व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक और भौतिक संतुलन बना सकता है। आज हम अध्याय 9, श्लोक 10 की व्याख्या करेंगे, जहाँ भगवान यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यह संपूर्ण सृष्टि उनकी देखरेख में ही कार्य करती है। प्रकृति को वे स्वयं संचालित नहीं करते, लेकिन उनकी शक्ति और प्रेरणा से ही यह चराचर जगत गतिमान रहता है। 📖 आज का श्लोक – श्रीमद्भगवद गीता 9.10 मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्। हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते॥ 📜 श्लोक का अर्थ: हे कौन्तेय (अर्जुन)! मेरी देखरेख में यह प्रकृति समस्त चराचर प्राणियों की सृष्टि करती है और इसी कारण यह संपूर्ण जगत घूमता रहता है। 🔷 गीता के इस श्लोक की विस्तृत व्याख्या 1️⃣ भगवान की सर्वोच्च सत्ता और प्रकृति का संचालन भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि वे सृष्टि के कर्ता नहीं है...

श्रीमद्भगवद गीता - अध्याय 9, श्लोक 9 का विस्तृत व्याख्यान

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  श्रीमद्भगवद गीता - अध्याय 9, श्लोक 9 का विस्तृत व्याख्यान भगवान श्रीकृष्ण का सनातन सृष्टि चक्र और कर्मयोग का रहस्य 🔷 प्रस्तावना श्रीमद्भगवद गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा में ले जाने वाला अमृत ज्ञान है। यह हमें यह समझने में सहायता करता है कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण समस्त सृष्टि को संचालित करते हैं और फिर भी वे इससे निर्लिप्त रहते हैं। आज हम अध्याय 9, श्लोक 9 का गूढ़ अर्थ समझेंगे और यह जानेंगे कि यह श्लोक हमारे जीवन में कैसे लागू होता है। 📖 आज का श्लोक - भगवद गीता (अध्याय 9, श्लोक 9) "न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय। उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु॥" 🔹 श्लोक का अर्थ: हे अर्जुन! ये समस्त कर्म मुझे बांध नहीं सकते, क्योंकि मैं इन सबसे निर्लिप्त रहता हूँ। मैं समस्त सृष्टि में उदासीन (निष्क्रिय) रहता हूँ, परंतु कर्मों के प्रवाह को बनाए रखता हूँ। 🔷 इस श्लोक की गहरी व्याख्या 1️⃣ भगवान कर्म से मुक्त क्यों हैं? भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कर्म में लिप्त नहीं होते, क्योंकि वे केवल सृष्टि का संचालन करते हैं, लेकिन इसके फल से प्रभावित नहीं होते। वे केवल ए...

📖 श्रीमद्भगवद गीता: अध्याय 9, श्लोक 8 - सृष्टि का रहस्य और प्रकृति का चक्र

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  📖 श्रीमद्भगवद गीता: अध्याय 9, श्लोक 8 - सृष्टि का रहस्य और प्रकृति का चक्र 🔱 परिचय श्रीमद्भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन का विज्ञान है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह हर युग में प्रासंगिक है। गीता के नवें अध्याय को "राजविद्या राजगुह्य योग" कहा जाता है, जिसमें भगवान सबसे गुप्त और श्रेष्ठ ज्ञान प्रदान करते हैं। आज हम अध्याय 9, श्लोक 8 को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि किस प्रकार यह संसार बार-बार उत्पन्न और विलीन होता है। 📜 आज का श्लोक (Chapter 9, Shlok 8) प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः। भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्॥ 🔍 अर्थ: भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि "मैं अपनी प्रकृति को नियंत्रित करके बार-बार इस संपूर्ण भूतसमूह को उत्पन्न करता हूँ, जो प्रकृति के अधीन है।" 🌿 विस्तृत व्याख्या 1️⃣ सृष्टि का चक्र: उत्पत्ति और विलय भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह सृष्टि उनकी दिव्य शक्ति से संचालित होती है। वे बार-बार सृष्टि की रचना करते हैं और समय पूरा होने पर इसे विलीन कर देते हैं। यह एक प्राकृतिक चक्र है...

भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 7 | सृष्टि का चक्र और ब्रह्मांड का रहस्य #Geetakasaar #jagatkasaar

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  भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 7 | सृष्टि का चक्र और ब्रह्मांड का रहस्य 📖 परिचय (Introduction) भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के रहस्यों को उजागर करने वाला एक दिव्य ग्रंथ है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को न केवल धर्म और कर्म की शिक्षा दी, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के नियमों को भी समझाया है। आज हम भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 7 की व्याख्या करेंगे, जिसमें श्रीकृष्ण ने बताया कि यह सृष्टि एक अनवरत चक्र में घूम रही है। हर कल्प के अंत में सभी प्राणी ब्रह्मा के साथ लीन हो जाते हैं और कल्प के प्रारंभ में पुनः जन्म लेते हैं। यह चक्र निरंतर चलता रहता है और यही इस ब्रह्मांड की अनिवार्य सच्चाई है। आइए, इस श्लोक को विस्तार से समझते हैं। 📜 भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक 7 सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्॥ ७॥ 🌿 श्लोक का अर्थ (Translation in Hindi) हे कौन्तेय (अर्जुन)! जब कल्प समाप्त होता है, तो समस्त जीव मेरी प्रकृति में समाहित हो जाते हैं, और कल्प के प्रारंभ में मैं उन्हें पुनः उत्पन्न करता हूँ। 🌎 सृष्टि का चक्र ...

🌿 भगवान कृष्ण की सर्वव्यापकता का रहस्य | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 6

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  🌿 भगवान कृष्ण की सर्वव्यापकता का रहस्य | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 6 🔷 भूमिका (Introduction) "क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण हर जगह व्याप्त होते हुए भी संसार के कर्मों से कैसे निर्लिप्त रहते हैं? क्या यह संभव है?" भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में गूढ़ रहस्यों को उजागर किया है, जो न केवल हमें आध्यात्मिक मार्ग पर ले जाते हैं, बल्कि हमारे जीवन को भी सरल और सफल बनाते हैं। आज हम अध्याय 9, श्लोक 6 पर चर्चा करेंगे, जहाँ भगवान कृष्ण बताते हैं कि वे इस पूरे ब्रह्मांड में स्थित हैं, फिर भी इससे अछूते रहते हैं। यह रहस्य गहरे चिंतन और समझ की मांग करता है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 6 यथा आकाश-स्थितो नित्यं वायु: सर्वत्र-गो महान्। तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानि इति उपधारय॥ 🔹 अर्थ: जिस प्रकार वायु, आकाश में स्थित रहते हुए भी उससे अलग रहती है, उसी प्रकार सभी जीव मुझमें स्थित हैं, फिर भी मैं उनसे अछूता रहता हूँ। 🌟 श्लोक की विस्तृत व्याख्या (Detailed Explanation) 1️⃣ भगवान सर्वत्र हैं, फिर भी स्वतंत्र क्यों? भगवान श्रीकृष्ण यहाँ समझा रहे हैं कि वे स...

💡 भगवान हर जगह हैं! गीता के इस श्लोक का गूढ़ रहस्य जानें!

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  💡 भगवान हर जगह हैं! गीता के इस श्लोक का गूढ़ रहस्य जानें! 🔹 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 9, श्लोक 5 भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि सभी जीव मुझमें स्थित प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में मैं उनमें नहीं हूँ। यह श्लोक दर्शाता है कि भगवान का अस्तित्व संसार के हर कण में है, लेकिन वे स्वयं इससे प्रभावित नहीं होते। 🌍 क्या इसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है? यह बताता है कि भगवान के बिना यह सृष्टि संभव नहीं, लेकिन वे स्वयं संसार के नियमों से मुक्त हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे एक सूर्य अपनी रोशनी से सब कुछ प्रकाशित करता है, लेकिन स्वयं किसी से प्रभावित नहीं होता। 🧘‍♂️ व्यावहारिक जीवन में कैसे लागू करें? 1️⃣ इस श्लोक को समझने से हमें यह अहसास होता है कि हर व्यक्ति में दिव्यता है, इसलिए हमें सभी का सम्मान करना चाहिए। 2️⃣ हमें अपने कर्मों में निष्काम भाव रखना चाहिए, क्योंकि भगवान हर समय हमें देख रहे हैं। 3️⃣ आत्मज्ञान और ध्यान के माध्यम से हम अपने अंदर की दिव्यता को जागृत कर सकते हैं। 🎧 अब श्रीमद्भगवद्गीता के पॉडकास्ट को YouTube Music पर जोड़ें! 👉 Podcast लिंक 📢 WhatsApp Channel...

भगवान कृष्ण की सर्वव्यापकता का रहस्य – गीता अध्याय 9, श्लोक 4

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  भगवान कृष्ण की सर्वव्यापकता का रहस्य – गीता अध्याय 9, श्लोक 4-5 श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अद्वितीय ज्ञान प्रदान करते हैं। अध्याय 9, श्लोक 4-5 में वे यह बताते हैं कि वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, लेकिन फिर भी वे किसी भी वस्तु से बंधे नहीं हैं। यह विचार न केवल गहरे आध्यात्मिक अर्थ को दर्शाता है, बल्कि भौतिक और आध्यात्मिक विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है।

📖 श्रद्धा और ज्ञान का महत्व 📌 परिचय

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  📖  श्रद्धा और ज्ञान का महत्व 📌 परिचय श्रद्धा और विश्वास ही किसी भी आध्यात्मिक मार्ग के सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के नवम अध्याय के तीसरे श्लोक में , भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि जो व्यक्ति श्रद्धा नहीं रखते, वे इस पवित्र ज्ञान और मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते । 📜 श्लोक 9.3 (संस्कृत एवं अर्थ) अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप | अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि || 🔹 अर्थ: जो श्रद्धा नहीं रखते, वे इस धर्म को प्राप्त नहीं कर सकते और वे बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र में फँसते रहते हैं। 📌 श्रद्धा क्यों आवश्यक है? ✅ 1. श्रद्धा से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। ➡️ बिना विश्वास के कोई व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर सकता। ✅ 2. श्रद्धा और भक्ति का गहरा संबंध है। ➡️ जो व्यक्ति श्रद्धावान होता है, वह भगवान के करीब होता है। ✅ 3. श्रद्धा के बिना अज्ञान बना रहता है। ➡️ बिना श्रद्धा के व्यक्ति सही मार्ग नहीं पहचान पाता। ✅ 4. श्रद्धा से मोक्ष का द्वार खुलता है। ➡️ श्रद्धा व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाती है। ✅ 5. श...

राजविद्या राजगुह्य योग | श्रीमद्भगवद्गीता 9.2 – गुप्ततम ज्ञान की महिमा!"

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  📌 परिचय श्रीमद्भगवद्गीता का नवम अध्याय भक्ति योग और ईश्वर के परम रहस्यों को उजागर करता है। श्लोक 9.2 में , भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यह ज्ञान राजविद्या (सभी विद्याओं में श्रेष्ठ) और राजगुह्य (सर्वोच्च गोपनीय) है। लेकिन यह ज्ञान क्यों इतना महत्वपूर्ण है? इसे जानने के लिए हमें इसके गहरे अर्थ को समझना होगा। 📜 श्लोक 9.2 (संस्कृत एवं अर्थ) इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे | ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् || 🔹 अर्थ: यह ज्ञान राजविद्या है, यह विज्ञान सहित है, और इसे जानने से व्यक्ति अशुभ से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। 📌 इस श्लोक की विशेषताएँ ✅ 1. राजविद्या – परम श्रेष्ठ ज्ञान ➡️ यह केवल पढ़ने के लिए नहीं है, बल्कि अनुभव करने योग्य है। ✅ 2. राजगुह्य – गोपनीय ज्ञान ➡️ केवल सच्ची श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति इसे समझ सकते हैं। ✅ 3. विज्ञान सहित ज्ञान ➡️ यह केवल अध्यात्म से जुड़ा नहीं है, बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी उपयोगी है। ✅ 4. मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ➡️ इसे जानकर व्यक्ति अशुभ कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। 📌 ...

📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 9, श्लोक 1 "गुप्ततम ज्ञान का रहस्य"

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  📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 9, श्लोक 1 "गुप्ततम ज्ञान का रहस्य" 🔷 संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ श्लोक 1 श्री भगवानुवाच इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे | ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् || 1 || हिंदी अर्थ: श्रीभगवान ने कहा— हे अर्जुन! क्योंकि तुम बिना द्वेष (ईर्ष्या) के हो, इसलिए मैं तुम्हें यह सबसे गोपनीय (गुप्ततम) ज्ञान बताने जा रहा हूँ। यह ज्ञान विज्ञान सहित है और इसे जानकर तुम सभी अशुभों से मुक्त हो जाओगे। 📌 इस श्लोक का सारांश और शिक्षा ✅ 1. यह ज्ञान विशेष व्यक्तियों को मिलता है भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि यह गुप्ततम ज्ञान है, जिसे वे केवल उन्हीं को बताते हैं जो निर्दोष (अनसूय) और निःस्वार्थ भाव से भक्ति करने वाले होते हैं। ✅ 2. यह केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि विज्ञान भी है यह ज्ञान केवल सूचना (Information) नहीं, बल्कि सीधा अनुभव (Realization) कराने वाला है। इसलिए इसे ज्ञान-विज्ञान सहित कहा गया है। ✅ 3. मोक्ष का गुप्त रहस्य इसे जानने के बाद मनुष्य सभी अशुभों (पापों) से मुक्त हो सकता है और जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष (Liberatio...

📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 28 "श्रेष्ठ योगी और मोक्ष का मार्ग"

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  📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 28 "श्रेष्ठ योगी और मोक्ष का मार्ग" 🔷 संस्कृत श्लोक एवं हिंदी अर्थ श्लोक 28 वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् | अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् || 28 || हिंदी अर्थ: जो व्यक्ति वेदों के अध्ययन, यज्ञ, तपस्या और दान से प्राप्त होने वाले समस्त पुण्य फलों को जान लेता है, वह योगी उन सबको पार कर जाता है और परमधाम को प्राप्त करता है। 📌 इस श्लोक का सारांश और शिक्षा ✅ 1. सांसारिक पुण्य से परे ज्ञान श्रीकृष्ण बताते हैं कि वेद, यज्ञ, तप और दान से मिलने वाले पुण्य से भी श्रेष्ठ कुछ है – और वह है योग और भक्ति का मार्ग , जो व्यक्ति को सीधे परमधाम की ओर ले जाता है। ✅ 2. मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग जो योगी आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति के पथ पर चलता है, वह उन सभी पुण्यों से परे चला जाता है जो अन्य धार्मिक कर्मों से प्राप्त होते हैं। ✅ 3. योगी का सर्वोच्च स्थान एक सच्चा योगी अंततः भगवान के परम धाम (मोक्ष) को प्राप्त करता है , जहाँ पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है। 🌟 मोक्ष प्राप्...