आधुनिक समाज में व्यभिचार: नैतिक मूल्य और धर्मग्रंथों की राय


आधुनिक समाज में व्यभिचार: नैतिक मूल्य और धर्मग्रंथों की राय

जगत का सार


नमस्कार दोस्तों, आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे जो आधुनिक समाज में बहुत प्रासंगिक है। हम देखेंगे कि कैसे प्राचीन धर्मग्रंथों में व्यभिचार को देखा गया है और आज के समाज में इसकी क्या स्थिति है। क्या नैतिक मूल्य समय के साथ बदल गए हैं या वे अभी भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं? आइए इस यात्रा पर चलते हैं जहां प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विचारधाराओं का मिलन होता है।




आज की प्रस्तुति

आज हम एक गंभीर विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे। हम पहले समझेंगे कि आधुनिक समाज में व्यभिचार की परिभाषा क्या है और इसका सामाजिक प्रभाव क्या है। फिर हम देखेंगे कि विभिन्न धर्मग्रंथों में इस विषय पर क्या कहा गया है। हम आधुनिक तर्कों और धार्मिक दृष्टिकोणों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे, इसके दुष्प्रभावों पर बात करेंगे, और अंत में कुछ संभावित समाधान सुझाएंगे जो प्राचीन ज्ञान से प्रेरित हैं लेकिन आधुनिक संदर्भ में लागू किए जा सकते हैं।


व्यभिचार: आज की परिभाषा और सामाजिक असर

आधुनिक समाज में रिश्तों की सीमाएँ (boundaries) धुंधली होती जा रही हैं। जहां पहले समाज में स्पष्ट नियम थे, वहीं आज के समय में ये नियम अस्पष्ट हो गए हैं। इससे रिश्तों में अस्थिरता बढ़ी है और विश्वास की कमी (trust issues) हो गई है।

आज के समय में लोग अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर नैतिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन क्या यह वास्तव में स्वतंत्रता है या नैतिकता की हार? जब एक व्यक्ति अपने साथी को धोखा देता है, तो उसका प्रभाव केवल उन दो लोगों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे परिवार और समाज पर पड़ता है।

"जब एक रिश्ते में विश्वास टूटता है, तो वह केवल दो लोगों के बीच की बात नहीं रहती; यह समाज के ताने-बाने को भी प्रभावित करती है।" - आचार्य चाणक्य

आधुनिक समाज में रिश्तों की अस्पष्ट सीमाएँ

आपकी राय: क्या आपने या आपके जानने वाले ने ऐसे हालात का सामना किया है जहां रिश्तों की सीमाएँ धुंधली हो गईं?


व्यभिचार का विस्तृत परिदृश्य

व्यभिचार केवल शारीरिक संबंधों तक सीमित नहीं है। आधुनिक समय में इसके कई आयाम हैं - मानसिक व्यभिचार जहां विचारों में ही अन्य व्यक्ति के प्रति आकर्षण होता है, डिजिटल व्यभिचार जिसमें ऑनलाइन संबंध शामिल हैं, शारीरिक व्यभिचार जो परंपरागत रूप से समझा जाता है, और सामाजिक व्यभिचार जिसमें सामाजिक संबंधों में अनुचित सीमाओं का उल्लंघन होता है।

इन सभी प्रकारों के व्यभिचार का परिवार और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह न केवल विश्वास तोड़ता है बल्कि एक स्वस्थ समाज के आधार को भी कमजोर करता है। आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया और ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स ने व्यभिचार के नए द्वार खोल दिए हैं, जिससे यह पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है।


धर्मग्रंथों में व्यभिचार: चेतावनी और समाधान

भारतीय धर्मग्रंथों में व्यभिचार को एक गंभीर पाप और समाज विरोधी आचरण माना गया है। मनुस्मृति, गरुड़ पुराण, महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में इस विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है।

इन ग्रंथों के अनुसार, किसी विवाहित व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखना ही नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म - तीनों स्तर पर अनुचित विचार रखना भी व्यभिचार की श्रेणी में आता है। यह एक ऐसा पाप है जो न केवल व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उसके परिवार और समाज पर भी बुरा प्रभाव डालता है।

"पतिव्रता और पत्नीव्रता - स्त्री-पुरुष दोनों के लिए - समाज का आधार है।" - धर्मशास्त्र

मनुस्मृति का दृष्टिकोण

मनुस्मृति में व्यभिचार को एक गंभीर अपराध माना गया है। इसमें कहा गया है कि पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति विश्वासघात न केवल उनके रिश्ते को, बल्कि पूरे समाज को नुकसान पहुंचाता है।

महाभारत की शिक्षाएँ

महाभारत में द्रौपदी के वस्त्रहरण प्रसंग से लेकर कई कहानियों में व्यभिचार के परिणामों को दिखाया गया है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि व्यभिचार के कारण न केवल व्यक्तिगत दुख होता है, बल्कि युद्ध जैसी विनाशकारी घटनाएँ भी हो सकती हैं।

गरुड़ पुराण का विश्लेषण

गरुड़ पुराण में व्यभिचारियों के लिए नरक का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि ऐसे व्यक्ति अगले जन्म में भी कष्ट भोगते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में कठिनाई होती है।


धर्मग्रंथों का मूल संदेश

धर्मशास्त्रों का मूल संदेश एकनिष्ठता, संयम, परिवार की प्रतिष्ठा और समाज की स्थिरता पर आधारित है। ये ग्रंथ बताते हैं कि जब दंपति एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहते हैं, तो न केवल उनका व्यक्तिगत जीवन सुखमय होता है, बल्कि समाज भी समृद्ध और स्थिर रहता है।

धर्मग्रंथों में एकनिष्ठता को केवल शारीरिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण माना गया है। वेदों में कहा गया है कि दंपति एक-दूसरे के प्रति समर्पित होकर ही जीवन के चारों पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - को प्राप्त कर सकते हैं।

रामायण में भगवान राम और माता सीता का जीवन एकनिष्ठता का आदर्श उदाहरण है। वे एक-दूसरे के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे, और उनके इस समर्पण ने ही उन्हें आदर्श दंपति बनाया। इसी तरह, महाभारत में सावित्री और सत्यवान की कहानी भी पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का उदाहरण है।

ज्ञान की बात: प्राचीन भारत में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता था। यह दर्शाता है कि विवाह केवल एक समझौता नहीं, बल्कि एक पवित्र बंधन है जो आत्माओं को भी जोड़ता है।


आधुनिक तर्क और धर्मशास्त्र

आधुनिक तर्क: "व्यक्तिगत स्वतंत्रता"

आज के समय में बहुत से लोग व्यभिचार को "पर्सनल चॉइस" या "व्यक्तिगत स्वतंत्रता" के नाम पर उचित ठहराते हैं। उनका मानना है कि जब तक दूसरे व्यक्ति को पता न चले, तब तक कोई नुकसान नहीं होता।

धर्मशास्त्र का जवाब

धर्मशास्त्र कहते हैं कि व्यक्तिगत सुख पर सामूहिक जिम्मेदारी भारी है। वे बताते हैं कि हर कर्म का प्रभाव केवल करने वाले तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि उसके परिवार, समाज और यहां तक कि आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ता है।

आधुनिक तर्क: "प्यार की नई परिभाषा"

कुछ लोग तर्क देते हैं कि प्यार की परिभाषा बदल गई है और एक से अधिक व्यक्तियों से प्यार करना या संबंध रखना अब स्वीकार्य है, जैसे पॉलीअमरी या ओपन रिलेशनशिप।

धर्मशास्त्र का दृष्टिकोण

धर्मशास्त्र स्पष्ट करते हैं कि प्यार और वासना में अंतर है। प्यार त्याग, समर्पण और एकनिष्ठता पर आधारित होता है, जबकि वासना क्षणिक सुख और स्वार्थ पर। वे सिखाते हैं कि सच्चा प्यार केवल एकनिष्ठता में ही पनपता है।

आधुनिक समाज में नैतिकता की परिभाषा बदल रही है, लेकिन क्या यह परिवर्तन वास्तव में प्रगति है या नैतिक पतन? क्या हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर सामाजिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर सकते हैं? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए।


व्यभिचार के दुष्प्रभाव: धर्म और विज्ञान की दृष्टि

शारीरिक प्रभाव

व्यभिचार के कारण यौन संचारित रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इससे न केवल व्यक्ति स्वयं, बल्कि उसके साथी को भी खतरा हो सकता है।

लंबे समय तक चलने वाले व्यभिचार संबंधों से तनाव बढ़ता है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। तनाव के कारण उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

मानसिक प्रभाव

धोखा खाने वाले व्यक्ति में अवसाद, चिंता और आत्मसम्मान की कमी जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएँ हो सकती हैं। इससे उनका दैनिक जीवन प्रभावित होता है और वे अपने काम या अन्य रिश्तों में ध्यान नहीं दे पाते।

धोखा देने वाले व्यक्ति को भी अपराधबोध और शर्म का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। वे अक्सर झूठ बोलने और छिपाने के कारण तनाव में रहते हैं।

सामाजिक और आध्यात्मिक प्रभाव

व्यभिचार से परिवार टूटते हैं और बच्चों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। अध्ययनों से पता चला है कि जिन बच्चों के माता-पिता के रिश्ते में धोखा हुआ है, वे भविष्य में अपने रिश्तों में भी समस्याओं का सामना करते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से, व्यभिचार आत्मा को कलुषित करता है और मोक्ष के मार्ग में बाधा बनता है। यह न केवल इस जन्म में, बल्कि आने वाले जन्मों में भी दुख का कारण बनता है।


आधुनिक मनोविज्ञान और व्यभिचार

धोखा क्यों दिया जाता है?

मनोविज्ञान के अनुसार, व्यभिचार के कई कारण हो सकते हैं - अतृप्त भावनात्मक या शारीरिक जरूरतें, संचार की कमी, आत्मसम्मान की कमी, अवसर या आकर्षण, और कभी-कभी बदला लेने की भावना।

ट्रॉमा और उसका प्रभाव

धोखा खाने वाले व्यक्ति को अक्सर एक प्रकार का आघात (ट्रॉमा) होता है। यह प्रभाव पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसा हो सकता है, जिसमें अविश्वास, फ्लैशबैक, और अनिद्रा जैसे लक्षण शामिल हैं।

रिश्ता बचाने की संभावना

हालांकि कठिन है, लेकिन कई जोड़े व्यभिचार के बाद भी अपने रिश्ते को बचा लेते हैं। इसके लिए ईमानदार संवाद, क्षमा, पेशेवर मदद, और दोनों पक्षों की ओर से प्रतिबद्धता आवश्यक है।

आधुनिक मनोविज्ञान व्यभिचार को एक जटिल मानवीय व्यवहार के रूप में देखता है, जिसके कई कारण और परिणाम हो सकते हैं। यह न तो इसे पूरी तरह से नैतिक रूप से गलत ठहराता है, न ही इसे सही। इसके बजाय, यह इसके कारणों और प्रभावों को समझने और समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित करता है।

जबकि धर्मग्रंथ व्यभिचार को एक पाप और नैतिक पतन के रूप में देखते हैं, मनोविज्ञान इसे व्यक्तिगत और रिश्ते की गतिशीलता के संदर्भ में देखता है। यह दो दृष्टिकोण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक ही समस्या के अलग-अलग पहलुओं को उजागर करते हैं।


क्या व्यभिचार कभी क्षम्य है?

क्या व्यभिचार कभी भी क्षम्य हो सकता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर धार्मिक और आधुनिक दृष्टिकोण अलग-अलग राय रखते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से, व्यभिचार एक गंभीर पाप है, लेकिन हिंदू धर्म में प्रायश्चित का भी महत्व है। यदि कोई व्यक्ति अपने पाप का पश्चाताप करता है और सच्चे मन से प्रायश्चित करता है, तो उसे क्षमा मिल सकती है। हालांकि, यह क्षमा आसानी से नहीं मिलती और इसके लिए कठोर तपस्या और आत्म-शुद्धि की आवश्यकता होती है।

आधुनिक दृष्टिकोण में, व्यभिचार को अधिक जटिल माना जाता है। यह मानता है कि कभी-कभी परिस्थितियाँ ऐसी हो सकती हैं जहां व्यक्ति गलती कर बैठता है। हालांकि, यह भी माना जाता है कि इस गलती का परिणाम भुगतना पड़ता है और इससे बचने के लिए संवाद और ईमानदारी जरूरी है।

दोनों दृष्टिकोणों में एक समानता यह है कि वे मानते हैं कि व्यभिचार से रिश्ते और समाज को नुकसान पहुंचता है, और इससे बचना ही सबसे अच्छा है। हालांकि, दोनों यह भी मानते हैं कि यदि ऐसा हो जाए, तो पश्चाताप, क्षमा और सुधार के माध्यम से आगे बढ़ना संभव है।


समाधान: प्राचीन सूत्र, आज के लिए

आध्यात्मिक अभ्यास: नियमित ध्यान और प्राणायाम से मन शांत होता है और आत्म-नियंत्रण बढ़ता है, जिससे व्यभिचार जैसे विचारों पर काबू पाना आसान हो जाता है।

एकनिष्ठता अपनाएँ

अपने रिश्ते में पूरी तरह से समर्पित रहें। रिश्ते में commitment और transparency होनी चाहिए। अपने साथी के साथ खुलकर बात करें और अपनी भावनाओं को साझा करें।

आत्म-संयम, ध्यान, संवाद

आत्म-संयम विकसित करें। नियमित ध्यान और योग से मन पर नियंत्रण बढ़ता है। साथी के साथ संवाद बनाए रखें और समस्याओं का समाधान आपसी बातचीत से निकालें।

गलती हो जाए तो प्रायश्चित

यदि गलती हो जाए, तो सच्चे मन से पश्चाताप करें और प्रायश्चित करें। क्षमा मांगें और आगे बढ़ने का प्रयास करें। धर्मशास्त्रों की सीख लें कि कैसे प्रायश्चित से आत्मा शुद्ध होती है।

प्राचीन ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों साल पहले था। हालांकि समय बदल गया है, मानव स्वभाव और उसकी मूलभूत जरूरतें वही हैं। हमें प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय करके अपने जीवन को संतुलित और सार्थक बनाना चाहिए।


प्राचीन धर्मग्रंथों के आधुनिक अनुप्रयोग

संयम का महत्व

आधुनिक समय में हमारे चारों ओर प्रलोभन बढ़ गए हैं। सोशल मीडिया, विज्ञापन और फिल्मों में यौन सामग्री आसानी से उपलब्ध है। ऐसे में संयम का अभ्यास पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

भगवद गीता में कहा गया है: "जो संयम से जीता है, वह सुख पाता है।" आधुनिक संदर्भ में इसका अर्थ है अपनी इंद्रियों और विचारों पर नियंत्रण रखना, जिससे हम अपने रिश्तों में सच्चे और निष्ठावान रह सकें।

रिश्तों में विश्वास

धर्मग्रंथों में पति-पत्नी के बीच विश्वास को बहुत महत्व दिया गया है। आज के समय में, जब रिश्ते अधिक जटिल हो गए हैं, विश्वास की नींव पर ही मजबूत रिश्ते बनते हैं।

रामायण में राम और सीता का रिश्ता विश्वास पर आधारित था। वे कठिन परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। आज के समय में भी, रिश्तों में विश्वास और समर्पण के इस आदर्श को अपनाना जरूरी है।

आत्म-जागरूकता और ध्यान

प्राचीन ग्रंथों में ध्यान और आत्म-जागरूकता पर बहुत जोर दिया गया है। आज के तनावपूर्ण जीवन में, ये अभ्यास हमें अपने विचारों और भावनाओं को समझने में मदद करते हैं।

पतंजलि के योगसूत्र में कहा गया है: "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" - योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है। नियमित ध्यान से हम अपने मन पर नियंत्रण पा सकते हैं और अनुचित विचारों से बच सकते हैं।

प्राचीन धर्मग्रंथों में निहित ज्ञान को आधुनिक जीवन में लागू करके, हम अपने रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं और व्यभिचार जैसी समस्याओं से बच सकते हैं। इन सिद्धांतों का पालन करने से न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति आती है, बल्कि समाज भी स्वस्थ और संतुलित रहता है।


सामाजिक परिवर्तन: हमारी जिम्मेदारी

समाज में व्यभिचार जैसी समस्याओं से निपटने के लिए केवल व्यक्तिगत प्रयास ही नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास भी आवश्यक हैं। हम सभी की यह जिम्मेदारी है कि हम एक ऐसा समाज बनाएं जहां नैतिक मूल्यों का सम्मान हो और रिश्तों की पवित्रता को महत्व दिया जाए।

जागरूकता बढ़ाना

युवाओं को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना और उन्हें व्यभिचार के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना। स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता देना।

संवाद को प्रोत्साहित करना

समाज में खुले संवाद को प्रोत्साहित करना, जिससे लोग अपनी समस्याओं और भावनाओं के बारे में बात कर सकें। सामाजिक मंचों और कार्यक्रमों के माध्यम से नैतिक मूल्यों पर चर्चा करना।

सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करना

अपने व्यवहार से सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करना। अपने रिश्तों में ईमानदारी, विश्वास और समर्पण दिखाना, जिससे दूसरों को प्रेरणा मिले।

हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है: "यथा राजा तथा प्रजा" - जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा होती है। इसी तरह, समाज के प्रभावशाली लोगों और नेताओं का यह दायित्व है कि वे अपने आचरण से सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करें।

यदि हम सभी अपनी जिम्मेदारी समझें और नैतिक मूल्यों का पालन करें, तो हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां व्यभिचार जैसी समस्याएं कम हों और रिश्तों में विश्वास और प्रेम बना रहे।


निष्कर्ष: प्राचीन ज्ञान और आधुनिक जीवन का संगम

हमने आज व्यभिचार के विषय पर विस्तार से चर्चा की है। हमने देखा कि कैसे प्राचीन धर्मग्रंथों में इसे एक गंभीर पाप माना गया है और इसके दुष्प्रभावों के बारे में चेतावनी दी गई है। हमने यह भी देखा कि आधुनिक समाज में इस विषय पर क्या दृष्टिकोण है और कैसे लोग इसे अलग-अलग तरीके से देखते हैं।

निष्कर्ष के रूप में, हम कह सकते हैं कि हालांकि समय बदल गया है, लेकिन मानवीय मूल्य और नैतिकता के आधारभूत सिद्धांत वही रहते हैं। व्यभिचार आज भी उतना ही हानिकारक है जितना प्राचीन काल में था। यह न केवल व्यक्तिगत रिश्तों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी कमजोर करता है।

मूल्यों का संरक्षण

हमें अपने प्राचीन मूल्यों का संरक्षण करना चाहिए और उन्हें आधुनिक संदर्भ में समझना चाहिए। एकनिष्ठता, विश्वास और संयम जैसे मूल्य आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।

संतुलन का महत्व

हमें आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाना चाहिए। हम नए विचारों को अपना सकते हैं, लेकिन अपने मूल मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए।

व्यक्तिगत जिम्मेदारी

अंततः, यह हमारी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है कि हम अपने रिश्तों में कैसे व्यवहार करते हैं। हमें अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और उनके परिणामों को स्वीकार करना चाहिए।

"जीवन एक संतुलन है। हमें अपने अतीत से सीखना चाहिए, वर्तमान में जीना चाहिए, और भविष्य के लिए तैयार रहना चाहिए।" - स्वामी विवेकानंद


आपके विचार हमारे लिए मूल्यवान हैं

आज हमने व्यभिचार के विषय पर एक गहन चर्चा की है। हमने इसके धार्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को देखा है। लेकिन यह चर्चा अभी समाप्त नहीं हुई है। हम आपके विचारों और अनुभवों को जानना चाहते हैं।

प्रश्न

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अगले एपिसोड में, हम आपके द्वारा सुझाए गए किसी विषय पर चर्चा करेंगे। हमारा उद्देश्य है प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में समझना और उसे अपने जीवन में लागू करना। आपके साथ इस ज्ञान यात्रा में शामिल होने के लिए धन्यवाद।

- जगत का सार टीम

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